Friday, February 19, 2010

जीवन का अफ़साना

इस डगर का ये भारी अफ़साना

मुश्किल है यहाँ से जी के जाना

दिन अंजाना , रात परवाना

फिर कैसा तू राही दिवाना ?

मिट गयी है जिन्दगी जीने की हसरत

करनी पड़ती यहाँ लाखों कसरत

दुखः भी आती तो देकर दस्तक

फिर कैसा ये चाहत बेगाना ?

है कैसी ये फितरत तेरी

या है मेरी नज़र टेढी

देख लीला दुनिया की !

उबकर मैंने आँखें बंद कर ली

है कैसा ये तेरा हरजाना ?

कहीं सिर्फ गम-मुसीबतें बर्षाना

तो कहीं खुशियाँ बनकर उमर जाना

फिर कैसा ये रिस्ता पुराना ?

है तो राह पार कर जाना

पड़ इसमें बार-बार कंकर-पत्थर का आना

और खुद को दुर्भाग्यशाली ठहराना

फिर कैसा तू राही दिवाना ?

- Kushboo Sinha
9 th std.
D.A.V. Public School,
Pupri,Sitamarhi

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