Wednesday, April 30, 2014

भारतीय रेलवे की विकास गाथा का श्याह सच (कुछ कहती हैं तस्वीरें- 18)



ये तस्वीरें बिहार प्रांत के सीतामढ़ी जिला मुख्यालय स्थित रेलवे परिसर की है। भले ही देश में मेट्रो सेल और मोनो रेल के माध्यम से विकास की नई कहानी गढ़ने की कोशिश की जा रही हो परंतु विश्व के सबसे बड़े रेल नेटवर्क, जिसके लिए संसद में अलग से बजट प्रस्तुत किया जाता है कि वास्तविक कहानी बयां करने के लिए ये तस्वीरें पर्याप्त हैं। विदित हो कि यह  रेलवे परिसर उन परिस्थितियों में ऐसी बदइंतजामी झेल रहा है जब न सिर्फ सीतामढ़ी रेलवे जं. को मॉडल स्टेशन बनाने की बातें लगातार होती रहती है बल्कि भौगोलिक और राजनितिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि यहाँ से मात्र  30-32 किलोमीटर बाद ही अंतरराष्ट्रीय सीमा प्रारम्भ हो जाती है।



Tuesday, April 1, 2014

आधुनिक विश्व में गांधी की प्रासंगिकता (कुछ कहती हैं तस्वीरें- 17)

इस तस्वीर में गांधीजी की तस्वीर टंगी दिखाई दे रही है यह तस्वीर भारत की नहीं बल्कि पड़ोसी देश नेपाल के सर्लाही जिला मुख्यालय स्थित ‘नेपाल नेत्र ज्योति संघ’ के कार्यालय की है
    ऐसा देश जो हाल-फिलहाल तक हिंसा के आग में जलता रहा है और अभी भी उस आग का धुआँ पूरी तरह से थम नहीं पाया है। जहां राजतंत्र को समाप्त कर प्रजातंत्र की स्थापना का प्रयास हिंसा के रास्ते पर चल कर ही किया गया और जहाँ की पहली प्रजातांत्रिक सरकार बंदूक के नोंक पर आजादी की लड़ाई लड़ने वाले मओवादियों की बनी, वहाँ की दीवारों पर मार्क्स या माओ की जगह अहिंसा के पुजारी मोहनदास कर्मचंद गांधी की तस्वीर एक सुखद आश्चर्य पैदा करने के साथ-साथ हमें यह सोचने पर भी मजबूर करती है कि क्या बापू द्वारा अपनाए गए अहिंसा के रास्ते का कोई भी विकल्प आधुनिक विश्व के पास है?
          अगर नहीं तब क्या विश्व समुदाय को हथियारों की होड़ से बाहर निकल कर शांतिपूर्ण विश्व की स्थापना के लिए गंभीरतापूर्वक विचार नहीं करना चाहिए?