Sunday, June 19, 2011

कुछ कहती है तस्वीरें – 7

यह तस्वीर सेवाग्राम(वर्धा) स्थित बापू कुटी के बाहर की है। बापू कुटी के बाहर सड़क किनारे स्थित इस कूड़ेदान पर लिखे शब्दों को देखकर वह पुरानी कहावत याद आ जाती है जिसमें कहा जाता है कि नुक्ता के हेर-फेर से खुदा जुदा हो जाता है। क्या हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी से जुड़े इस आश्रम के नाम के साथ कुछ भी लिखने से पहले यह ध्यान नहीं रखा जाना चाहिए था, जिससे अर्थ का अनर्थ होने से बचा जा सकता?

अब कूड़ेदान पर लिखे शब्दों को ठीक से देखिए और फिर बताइए इसे क्या माना जाए- सेवाग्राम आश्रम का कचरा पेटी या सेवाग्राम आश्रम ही कचरा पेटी या फिर कुछ और?

Tuesday, June 14, 2011

किस लिए याद किया जाएगा कांग्रेस गठबंधन के इस कार्यकाल का पहला दो साल?


1. सरकार का नियंत्रण अप्रत्यक्ष रूप से सोनिया गांधी के हाथों में होने की वजह से?

2. राहुल गांधी को अगला प्रधानमंत्री बनाने के लिए जनसंपर्क इकाई की भूमिका निभाने के लिए?

3. खाद्य पदार्थों की कीमतों में बेतहासा बढोत्तरी के लिए?

4. नौ महीने के भीतर पेट्रोल की कीमत में नौ बार की रिकॉर्ड वृद्धि के लिए?

5. पूँजीपतियों को अनुचित रूप से अतिरिक्त लाभ पहुंचाने की वजह से?

6. कमजोर तबके के बदहाल स्थिति का मजाक उस महारानी की तरह उड़ाने के लिए जिसने कहा था कि गरीबों के पास अगर दाल-रोटी नहीं है तो ब्रेड-मक्खन खाएं?

7. राष्ट्रमंडल खेल से संबंधित बड़े घोटालों के लिए, जिसके कारण भारत को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जगहसाई झेलनी पड़ी?

8. एक महत्वपूर्ण घटना, जिसे बहुत ज्यादा तवज्जो नहीं दी गई- आईसीसी जैसे धनकुबेर संस्था को भारत में क्रिकेट वर्ल्ड कप के आयोजन के लिए किन कारणों से टैक्स में छूट दी गई के लिए?

9. 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले के लिए?

10. इसरो से जुड़े एस बैंड स्पेक्ट्रम के आवंटन में उजागर हुए अनियमितता के लिए?

11. देश में भ्रष्टाचार की संख्या में उत्तरोत्तर वृद्धि के लिए?

12. देश को एक से बढकर एक भ्रष्ट, घोटालेबाज और कमजोर राजनेता देने के लिए?

13. गठबंधन का कोई मंत्री चाहे कितना भी भ्रष्ट या निकम्मा क्यों न हो, अगर वह कांग्रेस पार्टी तथा कांग्रेस की गठबंधन सरकार के लिए लाभकारी है तो उसका अंतिम समय तक हर संभव बचाव करने के लिए?

14. किसी भी भ्रष्टाचार, घोटाले या समस्या के जड़ में जाने के बजाए किसी एक को उसका जिम्मेदार ठहराकर, उसे बली का बकरा बनाते हुए उस मुद्दे से अपना पल्ला झाड़ने के लिए?

15. पिछले पूरे शीतकालीन सत्र को अपने हठ के कारण हंगामें की भेंट चढाने के लिए?

16. केंद्र के कांग्रेस गठबंधन सरकार के नाकतले कांग्रेस शासित राज्य में आदर्श सोसायटी महाघोटाले के लिए?

17. अनावश्यक रूप से भी सांप्रदायिकता शब्द को बार-बार उछालकर आवश्यक मुद्दों से ध्यान बांटने तथा अपनी गठबंधन सरकार की कमजोरियों और नक्कारियों को छुपाने के प्रयासों के लिए?

18. न्यायालय के विकारधीन व्यक्ति विनायक सेन को योजना आयोग के हेल्थ स्टियरिंग कमिटी का सदस्य बनाकर न्यायालीय प्रक्रिया में रोड़ा अटकाने के प्रयास के लिए?

19. ढुल-मुल विदेश नीतियों के लिए?

20. देश के असंतुलित विकास नीतियों के लिए?

उपरोक्त प्रश्न आम जनता के मन में उठने वाले अनगिनत अनुत्तरित प्रश्नों की बानगी भर है। क्या कांग्रेस गठबंधन की सरकार को हाल में आए बंगाल विधान सभा चुनाव के नतीजों से डर नहीं लग रहा, जहां 34 साल से जमें वाम मोर्चा की सरकार को भी उखाड़ फेकने में आम जनता को झिझक महसूस नहीं हुई?

अंत में एक आखरी सवाल और भी है कि क्या उपरोक्त सभी सवालों के लिए सिर्फ केंद्र कि गठबंधन सरकार ही जिम्मेदार है या कमजोड़ विपक्ष भी? जिसके शीर्षस्थ नेताओं ने आपसी खिंचतान में आम जनता के सामने कोई विकल्प ही नहीं छोड़ा है।

Sunday, June 5, 2011

आई.पी.एल. के बहाने किन प्रतिमानों को स्थापित करना चाहती है बीसीसीआई?



"सब गंदा है पर धंधा है|"

आई.पी.एल. यानी बीसीसीआई के आधिकारिक भाषा में कहें तो- 'इंडियन प्रिमियर लीग', आलोचकों की भाषा में कहें तो- बीसीसीआई को पैसा चाहिए भाई पैसा, यानी 'इंडियन पैसा लीग', 'इंफोटेंमेंट मीडिया' की भाषा में कहें तो- आई.पी.एल. की कई ऐसी टीमें हैं जिनकी बागडोर पत्नियों या प्रेमिका के हाथों में है, यानी 'इंडियन पत्नि लीग'| बीसीसीआई यानी सामान्य अर्थों में कहें तो भारत में क्रिकेट को नियंत्रित करने वाली संस्था| थोड़े से भिन्न शब्दों में कहें तो भारत के क्रिकेट कारोबार पर आधिपत्य रखने वाली एक मात्र कारपोरेट संस्था|

अब आई.पी.एल. की शुरूआत कैसे हुई इस कहानी से हम सभी वाकिफ हैं| पर बीसीसीआई ने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि जिस आई.पी.एल. को वह भारत में उसके क्रिकेट साम्राज्य को चुनौती देने वाले सुभाष चंद्रा के आई.सी.एल.(इंडियन क्रिकेट लीग) से खौफ खाकर उसके विरूद्ध खड़ा कर रही है वही आई.पी.एल. उसके लिए सोने का अंडा देने वाली मुर्गी साबित होगी| अब यह मुर्गी तो सोने से भी अधिक चमकदार हो गई है, परन्तु इस मुर्गी के जीवन के कुछ पहलुओं तथा इसके पालक(बीसीसीआई) के भूमिका की समिक्षा आवश्यक है| आई.पी.एल. में मात्र एक बात जो बहुत शानदार है वह यह कि इसकी अवधारणा में क्षेत्रवाद जैसी कोई बात नहीं है| यहां हम एक ही टीम में शहर, देश-दुनिया की सीमाओं को परे रखते हुए, जिस टीम का नामकरण किसी-न-किसी शहर या राज्य के नाम के आधार पर किया गया है, देश के विभिन्न हिस्सों से आए खिलाड़ियों तथा विदेशी खिलाड़ियों को साथ-साथ खेलते देख सकते हैं| जिसके आधार पर हम नेशनल इंटीगिरिटी ही नहीं इंटरनेशनल इंटीगिरिटी की बात कर सकते हैं| पर यहां सवाल यह भी उठता है कि अगर झारखण्ड की कोई टीम नहीं है और वहां का कोई खिलाड़ी चेन्नई के तरफ से खेल रहा है, यहां तक तो ठीक है, परन्तु किसी शहर या राज्य के नाम पर टीम होने के बावजूद वहां का कोई खिलाड़ी दूसरे शहर या राज्य के नाम के आधार पर बनाई टीम में खेल रहा है तब किसी शहर या राज्य विशेष के नाम के आधार पर टीम के नामकरण का क्या औचित्य है?

सिर्फ इसलिए कि उस शहर या राज्य विशेष के लोगों को उस टीम के साथ भावनात्मक रूप से जोड़ा जा सके और फिर उसकी मार्केट वैल्यू लगाई जा सके? माना कि आई.पी.एल. चौकों-छक्कों की बरसात, विकेटों के पतन तथा रोमांच का नाम है, परन्तु इन सबके बहाने आम क्रिकेट प्रेमियों के भावनाओं की कीमत लगाने की इजाजत नहीं दी सकती| दूसरी बात यह कि जिस आई.पी.एल. के टीम निर्माण की प्रक्रिया खिलाड़ियों के खरीद-फरोख्त पर आधारित है, क्या वह खरीद-फरोख्त की प्रक्रिया खिलाड़ियों को मैच-फिक्सिंग जैसे कार्यों के लिए प्रेरित नहीं करती? इधर आई.पी.एल. में एक नया विवाद दक्षिण अफ्रीकी चीयर लीडर गेबरियेला पास्क्वालोटो के ब्लॉगिंग से उठ खड़ा हुआ| जिसमें दक्षिण अफ्रीकी चीयर लीडर ने यह आरोप लगाया कि आई.पी.एल. की लेट नाईट पार्टियों में क्रिकेटर बदतमीजी की हद पार कर जाते हैं, जिसमें कई तो अपने कमरे में आने का ऑफर तक दे डालते हैं और यह सब भी तब जब इन पार्टियों में जगह-जगह कैमरे लगे होते हैं| वैसे तो बीसीसीआई इन लेट नाईट पार्टियों पर लगाम की बात तो करती है, परन्तु कहा यह जाता है कि बीसीसीआई इन पार्टियों को जानबूझकर इसलिए नजरअंदाज करती है क्योंकि ये पार्टियां भी छुपे रुप में आई.पी.एल. तथा उनकी टीमों के पब्लिसिटी कैम्पेन का हिस्सा है| परन्तु जिस तरह के आरोप चीयर लीडर गेबरियेला के द्वारा लगाए गए हैं क्या वह भारतीय संस्कृति से मेल खाती है? अगर नहीं तो जिन क्रिकेटरों को उनके करोड़ों भारतीय प्रसंशक सर-आंखों पर बिठा कर रखते हैं उन पर इनकी करनियों का प्रभाव नहीं पड़ेगा? क्या इससे भारतीय युवा वर्ग में उत्श्रृंखलता का प्रसार नहीं होगा? अगर हाँ, तो क्या बीसीसीआई की भारतीय समाज और संस्कृति के प्रति कोई जवाबदेही नहीं है?

इतना ही नहीं इस घटना को दबाने के लिए ब्लॉगिंग के बहाने आई.पी.एल. के दूसरे पक्ष को दुनिया के सामने लाने वाली चीयर लीडर को आनन-फानन में बाहर का रास्ता दिखाते हुए स्वदेश वापस भेज दिया गया| आरोप यह लगाया गया कि वह क्रिकेटरों की निजी जानकारियों को सार्वजनिक कर रही थी| उस चीयर लीडर गेबरियेला का आरोप है कि उसे अपनी बात रखने का मौका तक नहीं दिया गया तथा उसके साथ इस तरह व्यवहार किया गया जैसे वह कोई अपराधी हो| तो क्या क्रिकेटरों को इन पार्टियों में कुछ भी करने का अधिकार है और गेबरियेला जैसी लड़कियों को अपनी बात रखने का अधिकार भी नहीं?

कहीं ऐसा तो नहीं कि बीसीसीआई इस फॉरमुले पर चल रही है-

"
सब गंदा है पर धंधा है|"