Monday, February 23, 2009

सर्दी की दोपहरी

सर्दी की दोपहरी में
सुशुम से नभ के नीचे
काँप रही धरती थी
शालों में लिपटी हुई
नई नवेली दुल्हन भी
घर से बाहर निकली थी
नजारे तो कुछ ऐसे थे
इस भरे वसुधा के
मानों वे तरस गये हों
थोड़ी सी धूप पाने को!

सर्दी की दोपहरी में
जरा पूछो वैसे लोगों से
जिनके शरीर पे वस्त्र नहीं
गाय,भैंस और बैल के पास भी
जलती रहती आग तो सही
मगर कुछ तो ऐसे लोग हैं
जिनके नसीब यह भी नहीं
काँप रही थरथर बदन
भुलक रहे रोयें हैं
और इस खुली आसमां के नीचे
शरद हुई वसुधा पे
ऐसे बच्चे भी सोये हैं
परिस्थितियों से मजबूर होकर
किसान सर्दी को दूर छोड़कर
हल,बैल और दो रोटी लेकर
खेत में अपने खोए हैं
टपक रहे है पसीना इनके
जैसे पानी से भिगोए हैं
हमने भी सुनी है
बहादुरी यहाँ के विज्ञान की
और एक नहीं अनेक वैज्ञानिकों के भी
नमन तो करती हूँ मैं भी
श्रद्धा से इनकी
लेकिन बस एक प्रश्न है मेरी
क्या अविष्कारें होती हैं सिर्फ
सेठ और साहुकारों के लिए ही?
-Kushboo Sinha
8 th std.
D.A.V. Public School,
Pupri,Sitamarhi

Saturday, February 21, 2009

कुछ कहती है तस्वीरें


वैसे तो हर तस्वीर कुछ कहती है.कहा जाता है की एक तस्वीर हजार शब्दों के बराबर होता है.पर यह तस्वीरें तो शायद कुछ ज्यादा ही कहती है.
अब आप ही बताएँ इसे क्या माना जाए?
-महान भारतीय कल्चरल वैल्यू जो हर कल्चर,परम्परा,धर्म और देश का सम्मान करना जनती है?
या फ़िर
-भारतीय युवाओं के सर चढा पश्चिमी सभ्यता का बुखार?

विडम्बना

जब कोई लेकर हाथ में कटोरी!
किसी अन्य दरबार पे जाता है!!
क्या भगवान तुझे यह भाता है?
क्या भगवान...........................है?
क्या जन्म लेने से पहले भी कोई गलती कर जाता है?
फिर तू इतना क्यों अंतर दिखलाता है?
किसी की भर देता है झोली सारी!
कोई एक पैसा को भी तरस जाता है!!
किसी को देता है तू उँची-उँची इमारतें!
कोई झोपड़ी भी नहीं पाता है!!
कहीं दूध से नहाता है कोई!
कहीं पीने को भी नहीं पाता है कोई!!
क्या भगवान तुझे यह सब भाता है?
इस प्रलय भरी दुनिया में तू अब क्या प्रलय लाता है?
किसी को यहाँ से बेघर क्यों कर जाता है?
कहीं कैट्रीना,कहीं सुनामी क्यों लाता है?
इस भरी धारा को ही क्यों नहीं ले जाता है?
जो इस वसुधा पे हहाकार फैलाता है.
-Kushboo Sinha
8 th std.
D.A.V. Public School,
Pupri,Sitamarhi