Monday, May 19, 2008

क्रिकेट का लौह पुरुषः सौरव गांगुली

विवेक विश्वास :
एक ऐसा सख्स जिसमें क्रिकेट का जुनून कुट-कुट कर भरा है.बाहों पर बंधे पैड पर लगा तिरंगा इस बात की ताकिद देता है कि देश के लिए खेलने के नाम मात्र से वह कितना रोमांचित रहता है.
शख्सीयत ऐसी जो अपने शुरुआती दिनों से ही बड़े-से-बड़े नामों को खुद पर हावी नहीं होने दिया.जिसके गगनचुंभी छक्के क्रिकेटप्रेमियों को क्रिकेट मैदान एवं टेलीविजन स्क्रिन तक खिंच लाती है,तो दुसरी ओर कवर ड्राइव के रुप में लगाए गए शानदार चौके को उस खिलाड़ी का सिंगनेचर शौट कहा जाता है.

निश्चित रुप से हम उस खिलड़ी की बात कर रहे हैं जो क्रिकेट के मैदान पर अक्सर अपने बल्ले से दादागिरी दिखाते नजर आते हैं, कोई उन्हे प्यार से "बंगाल टाईगर" तो कोई "प्रिन्स औफ कोलकाता" कहकर बुलाता है तो कोई "महाराज" और "दादा" कहता है.

अपनी पहली ही सिरिज के बाद चार साल के लिए टीम से बाहर हुए इस खिलाड़ी को जब लोग भुलने लगते हैं तभी टीम में उनकी वापसी होती है और लौर्डस टेस्ट सहीत लगातार दो मैचों में शतक जड़कर अपनी शानदार उपस्थिती दर्ज कराते हैं.इसके बाद इस खिलाड़ी ने कभी पिछे मुर कर नहीं देखा.क्रिकेट के दोनों संस्करणों में निरन्तर अच्छे पदर्शन का इनाम कप्तानी की ताजपोशी के रुप में मिला.इस नई जिम्मेदारी को ग्रहण कर 'दादा'ने भारतीय क्रिकेट टीम का कायाकल्प ही बदल दिया.टीम में जीत की भूख पैदा की.फिर तो इस महान कप्तान ने भारतीय क्रिकेट इतिहास में एक नई कहानी ही गढ दी.यह कहानी थी सफलता की,एक नए तेवर की.

पर सफलताओं के बीच समय ने एक बार फिर पलटा खाया और 'दादा' को न सिर्फ कप्तानी गवाँनी पड़ी बल्कि टीम से स्थान भी गवाँ बैठे.

पर यह धुरंधर हार कहाँ मानने वाला था.जो हार मान गया वह 'सौरभ गांगुली' नहीं. लगभग डेढ सालों के अन्तराल पर एक बार फिर इनकी धमाकेदार वापसी होती है और भारतीय क्रिकेट पहले से कहीं बेहतर और तरोताजा 'सौरभ गांगुली' को पाता है.उनकी वापसी को दो साल बीतने को है और हमें उस महान खिलाड़ी की एक से बढकर एक जीवट पारियाँ देखने को मिल रही है.हालाँकि वर्तमान समय में चयनकर्ताओं ने युवापिढी की दुहाई देकर उन्हे एकदिवसीय टीम से बाहर कर दिया है,परन्तु दिग्गजों की फेहरिस्त में उन्हे हमेशा अहम स्थान दिया जाएगा.
ऐसे में सौरभ गांगुली को "क्रिकेट का लौह पुरुष" कहा जाए तो अतिश्योक्ति नहीं होगी.

जगत जननी सीता की पावन धरतीःसीतामढी


- विवेक विश्वास

(Punaura-Birth Place of Sita mata)
भारतीय गणराज्य के बिहार प्रान्त के उत्तरी सीमा पर बसा है सीतामढी.इस जिले की उतरी सीमा,पड़ोसी देश नेपाल की सीमा से जुड़ी हुई है.
ऐसी मान्यता हैं कि जिला मुख्यालय से पाँच किलोमीटर दक्षिण-पश्चिम में पुनौरा नामक स्थान पर जगत जननी सीता का जन्म हुआ था। जहाँ आज श्री राम और सीता का भव्य मंदिर है,जो
श्रद्धालुओं को अपनी ओर आकर्षित करता है. मंदीर में स्थापित श्री के मूर्ति की पूजा रोज मठाधीश के द्वारा की जाती है.
पौराणिक कथाओं के अनुसार सीतामढी कभी न्यायप्रिय राजा जनक के राज्य का हिस्सा हुआ करता था. उनके शासनकाल में एक समय ऐसा भी आया जब प्राणदायीनी जल के बुंद-बुंद के लिए लोग तरस रहे थे.इन्द्रदेव की नाराजगी का यह आलम था कि राजा जनक के पूरे राज्य में अन्न के लाले परे थे.तभी यह भविष्यवाणी हुई कि राज्य के पालन हार राजा जनक यदि स्वयं पूरे राज्य में हल चलाते हैं तब आसमान भी बदहाल जनता के दर्द पर रो परेगी.
अब राजा जनक के लिए एक तरफ था राजसी ठाठ-बाठ तो दुसरी तरफ उनकी भूखी-प्यासी जनता.परिस्थिती ऐसी थी कि जनकपूर-नरेश ने हल थामना ज्यादा बेहतर समझा.जब जनकजी हल जोतते हुए सीतामढी के पुनौरा पहुँचे तो हल लगने के कारण धरती में गड़ा एक घड़ा फुटा और उस घड़े से सीताजी अवतरीत हुईं.
सीताजी का जन्म होना था कि आसमान भी खुद को रोक न सका और बारिस की बुंदें झरने लगी.इन बारिस की बुंदों से जगत जननी सीता को बचाने के लिए राजा जनक जगत जननी को लेकर एक मड़ई(झोपड़ी) की तरफ भागे.यह मड़ई अब सीतामड़ई अर्थात सीता की झोपड़ी के नाम से जाना जाने लगा.किंवदती है कि यही नाम कालान्तर में अपभ्रंश होकर सीतामढी हो गया.
श्रद्धालु पुनौराधाम में स्थित मंदिर के साथ-साथ,सीतामढी नगर में स्थित जानकी मंदिर के दर्शन करना भी नहीं भुलते.
जहाँ सीतामढी नगर से लगभग 40 किलोमीटर की दुरी पर दरभंगा की तरफ जाने वाली रेलवे लाइन के समीप रामायण से जुड़ी अहिल्या स्थान है तो दुसरी तरफ लगभग 60 किलोमीटर उत्तर-पूर्व में नेपाल की सीमा में राजा जनक की राजधानी जनकपुर स्थित है.

Saturday, May 17, 2008

मनमोहक,दर्शनीय-भेड़ाघाट(घुआंधार जलप्रपात)


विवेक विश्वास:
मध्य प्रदेश में जबलपुर शहर के बगल में नर्मदा नदी के गोद में बसा एक जगह जहाँ घुमती सड़कें उचाइयों की तरफ बढ रही थी,पेड़ों से पटी झुरमुठ के पिछे से झांकती झाड़ियाँ,जो उस जगह के लिए किसी नवविवाहिता के द्वारा प्रयुक्त श्रिंगार प्रशाधन से कम न थी.
चारों तरफ फैली बड़ी-बड़ी चट्टानें खुद में अटल एवं आभायुक्त चरित्र को समेटे हुए थी.उन चरित्रों को उभारनें का कार्य वहाँ के शिल्पकार कर रहे थे,जो उनकी जीविका का साधन एवं आगन्तुकों के आकर्षण के केन्द्र भी थे.कलाक्रितियाँ ऐसी जो बरबस ही आगन्तुकों की भीड़ को अपनी ओर खींच रही थी.

आगे बढने पर नीचे उतरते पथरीले -संकड़े रास्ते,जहाँ सुरज की किरणें चारों तरफ व्याप्त संगमरमर के वास्तविक चरित्र के प्रदर्शन में अपना योगदान दे रही थी.नदजल की कलकल ध्वनी जो उँचाई से गिरने पर कर्णप्रिय संगित के रुप में हमारे कानों तक पहुँच रही थी तथा जल की बुंदे उँचाई से गिरने पर फुहरों में परिवर्तित हो कपासी प्रतिरुप प्रदर्शित कर रही थी.
नर्मदा एवं बैण-गंगा की सम्मिलित तेज धारा एवं गहरी खाई,जो हमारे दिल की धड़कनों को तेज कर रही थी और अनजान खतरे से आगाह भी.
कुल मिलाकर एक ऐसा मनोरम जगह जो हमारे मन को आह्लादित एवं नयनों को त्रिप्ती की परकाष्ठा तक ले जा रहा था.