Sunday, March 8, 2015

दावों और वादों के बीच बिहार में उच्च शिक्षा का परिदृश्य

बिहार में उच्च शिक्षा की स्थिति का आकलन इससे किया जा सकता है कि अभी भी कक्षा में विद्यार्थियों की 75% प्रतिशत उपस्थिति सिर्फ कागजों तक सीमित है। कुछ राज्यों में जहां स्नातक तक के छात्रों की उपस्थिति दर्ज करने के लिए बायोमीट्रीक सिस्टम लगा दिया गया है, वहीं बिहार में उच्च शिक्षा में सुधार की जो कवायद चल रही है उसमें सबसे बड़ी बाधा आधारभूत सुविधाओं की कमी के साथ-साथ कॉलेजों एवं विश्वविद्यालयों में शिक्षकों की भारी कमी है। अब सवाल यह है कि जब शिक्षक ही नहीं हैं तो विद्यार्थी कक्षा में उपस्थित रहकर भी आखिर किसके भरोसे आसमान में सुराख करेंगे? क्या डेस्क-बेंच, कुर्सी-टेबल और दिवारों के भरोसे? शिक्षकों की संख्या में कमी का आलम यह है कि बिहार के सौ से अधिक कॉलेजों के नैक एक्रेडेशन का आवेदन नैक के द्वारा सिर्फ इसलिए वापस कर दिया गया, क्योंकि उन कॉलेजों में एक्रेडेशन के लिए आवश्यक कम से कम 12 शिक्षकों की संंख्या भी नहीं थी। यह स्थिति सिर्फ सामान्य विषयों की ही नहीं है, बल्कि तकनीकी और व्यवसायिक विषयों का हाल भी एक जैसा ही है. तकनीकी और व्यवसायिक विषयों की कक्षाएं ज्यादातर ऐसे अतिथि शिक्षकों के भरोसे संचालित की जा रही हैं, जो यूजीसी द्वारा निर्धारित न्यूनतम अहर्ताएं भी नहीं रखते.  
इतना ही नहीं पूरे बिहार में एक-दो विश्वविद्यालयों को छोड़ दिया जाये तो किसी भी विश्वविद्यालय का अकादमिक सत्र सही समय पर नहीं चल रहा है।  शिक्षकों की संख्या तो कम है ही साथ ही कहीं भवन है तो बैठने की व्यव्स्था नहीं है, कहीं भवन और बैठने की व्यवस्था है तो प्रयोगशाला संसाधनों की कमी से जूझ रहा है तथा पुस्तकालयों में एक तो किताबों की संख्या बहुत कम है और जो हैं भी उन्हें उचित प्रबंधन के अभाव में दिमक चाट रहे हैं।
यहां सरकारी और प्रशासनिक रूप से चाहे जो भी वादे और दावे किए जा रहे हों या फिर जिन वजहों से इन दावों और वादों को अमली-जामा पहनाने में दिक्कत आ रही हो परंतु यह कहने में कोई गुरेज नहीं कि इन दावों और वादों के बीच विद्यार्थियों के भविष्य को जरूर सूली पर लटकाया जा रहा है.

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