Friday, November 18, 2011

भूली-बीसरी यादें.... हमारा पहला मीडिया संस्थान भ्रमण

यह यात्रा वृतांत मेरे द्वारा अपने एम.ए. के शुरूआती दिनों में लिखी गई थी। दरअसल यह यात्रा हम लोगों के लिए पहला मौका था जब हम किसी मीडिया संस्थान या उसके किसी यूनिट को इतने करीब से देखने जा रहे थे। बस उसी उत्साह को उस समय के एक कॉपी में कलमबद्ध कर मैं भूल गया था। पिछले दिनों अपनी पूरानी कॉपियों को पलटने के क्रम में जब मेरी नजर इस पर गई तो लगा की क्यों न इसे सबके सामने लाया जाए, सो मैं इसे यहां प्रकाशित कर रहा हूँ –

सुबह के छ: बज चुके थे, खिड़की एवं दरवाजों के पाटों से झाँकती धुंधली रौशनी सवेरा होने का एहसास करा रही थी। मन में एक नई उमंग, कुछ जानने की जिज्ञासा, बिल्कुल नई चीजों से रूबरू होने का उत्साह, मन-मस्तिष्क में एक नई ऊर्जा का संचार कर रही थी। हमलोग फटाफट तैयार होकर गाड़ी का इंतजार कर रहे थे। कुछ ही समय बिता था कि गाड़ी हमारे सामने आकर खड़ी हो गई। हमलोगों को लोकमत समाचारपत्र के मुद्रण कार्यालय एवं मुख्य कार्यालय के भ्रमण के लिए जाना जो था। हमलोग मन में चल रहे सारे उधेड़-बुन को समेटते हुए गाड़ी में बैठ चुके थे। कुछ क्षणों पश्चात ही गाड़ी अपनी रफ्तार पकड़ चुकी थी। हमलोग अपने प्रभारी महोदय के साथ विश्वविद्यालय परिसर होते हुए पत्रकारिता के विभिन्न पहलुओं पर आपस में चर्चा करते हुए, जिसके बीच-बीच में आपस में हंसी-मज़ाक भी हो रहा था, आगे बढ़ रहे थे।

लगभग डेढ़ घंटे के पश्चात हमलोग बूटिबोड़ी पहुँच चुके थे, जो नागपूर शहर के समीप स्थित है। यहीं लोकमत समूह का मुद्रण कार्यालय है। बूटिबोड़ी कार्यालय में हमलोगों को वहाँ के बारे में पूरी जानकारी देने की ज़िम्मेदारी वहाँ के प्रोडक्सन ऑफिसर शैलेश आकरे की थी। बूटिबोड़ी में लोकमत समूह का सिर्फ छपाई कार्य ही संपन्न होता है, जबकि छपाई पूर्व की सारी प्रक्रियाएं नागपूर स्थित कार्यालय में पूरी की जाती है। यहाँ हमलोगों को समाचारपत्रों के छपाई के विभिन्न पहलुओं को जानने का मौका मिला। खासकर यह कि जिन समाचारपत्रों के बिना हमलोग सवेरे-सवेरे बेचैनी महसूस करने लगते हैं, उसके पीछे संवाददाताओं, उपसंपादकों एवं संपादक के अलावे मुद्रण से जुड़े सैकड़ों कर्मचारियों का अथक परिश्रम होता है।

वहाँ लगे बड़े-बड़े संयंत्र एवं आधुनिक तकनीक हमें इस बात का एहसास करा रही थी कि प्रिंट मीडिया भी किसी मायने में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से पीछे नहीं रहना चाहती। यहाँ भी हाई क्वालिटी मोडेम एवं उच्च स्तरीय मुद्रण तकनीक का इस्तेमाल हो रहा है। यहाँ आकर हमें पता चला कि जो समाचारपत्र मात्र चंद रुपए में हमारे हाथों में आ जाता है, उसका उत्पादन मूल्य उससे कई गुणा अधिक होता है, जिसकी क्षतिपूर्ति विज्ञापन आदि माध्यमों से की जाती है।

यहाँ के उलझनों को सुलझाते-सुलझाते ही हमें देर हो चुकी थी और समयाभाव के कारण हमें मुख्य कार्यालय जाने के कार्यक्रम को स्थगित करना पड़ा। फिर भी सभी के चेहरे पर तैरती खुशी यह ब्याँ कर रही थी कि हमने समाचारपत्रों के मुद्रण से संबंधित विभिन्न जानकारियों को समेटने की कोशिश की थी

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