Sunday, May 29, 2011

तकनीक तथा समय के साथ सेक्सवर्करों के पेशे का बदलता स्वरूप और मीडिया

महानगरीय संस्कृति एवं ग्लैमर ने आज देह व्यापार के मायने ही बदल दिए हैं। आज के दौर में यह व्यापार काफी हाईटेक हो गया है। समय के साथ सेक्सवर्करों के कार्य करने के तरीके में काफी बदलाव आया है। जिसमें तकनीकी एवं संचार क्रान्ति ने अहम भूमिका निभायी है। संचार क्रान्ति के बाद यह धंधा अपेक्षाकृत अधिक सुरक्षित हो गया है। रेड लाइट एरिया तक जाने में बदनामी का डर रहता है लेकिन आज के हाई प्रोफाइल सेक्स बाजार में कोई बदनामी नहीं, क्योंकि ग्राहक को मनचाही जगह पर मनचाही जरूरत पूरी हो जाती है और किसी को कानों-कान खबर तक नहीं होती। बस मोबाइल पर एक कॉल और इंटरनेट पर एक क्लिक से मनचाही कॉलगर्ल आसानी से उपलब्ध हो जाती है। इंटरनेट और नए संचार माध्यमों के जरिये अब इस कारोबार में न केवल विदेशी लड़कियां शामिल हैं बल्कि मॉडल्स, कॉलेज गर्ल्स और बहुत जल्दी ऊंची छलांग लगाने की इच्छा रखने वाली मध्यमवर्गीय महत्वाकांक्षी लड़कियों की संख्या भी बढ़ गई है।

कुछ लोगों का कहना है कि दिल्ली के उच्च वर्ग, पार्टी सर्कल और सोशलाइटों के बीच गुड सेक्स फॉर गुड मनी एक जाना पहचाना मुहावरा है। परन्तु इस वर्ग द्वारा सारी डीलिंग ई-मेल के द्वारा की जाती है। इंटरनेट पर ऐसी अनेक साइटें उपलब्ध हैं जिस पर मॉडल्स से लेकर कॉलेज गर्ल्स तक के फोटो के साथ उनके रेट भी लिखे होते हैं।

पुलिस के बड़े अधिकारी भी मानते हैं कि अब कॉलगर्ल और दलालों की पहचान मुश्किल हो गई है, क्योंकि इनकी वेशभूशा, पहनावा व भाषा हाई प्रोफाइल है और उनका काम करने का ढंग पूरी तरह सुरक्षित। इस हाई प्रोफाइल रैकेट का सारा कारोबार पौर्न वेबसाइटों, ई-मेल तथा मोबाइल के माध्यम से होता है।

विश्व सेक्स बाजार में आजकल एक टर्मोलॉजी सनसनी की तरह पेश की जा रही है - ` अण्डर ऐज ´ यानी कमसिन लड़कियां या छोटी बच्चियां और इसके लिए जिम्मेदार है - चाइल्ड प्रोनोग्राफिक वेबसाइटें। चाइल्ड प्रोनोग्राफिक वेबसाईटों के विस्तार के साथ ही कुंठाग्रस्त पुरूष समाज में `अण्डर ऐज´ की ललक बढ़ी है। बच्चों की अश्लील सामग्री से अटी पड़ी करीब साढ़े तीन लाख साइटें बीमार मानसिकता वालों की यौन-क्षुधा की पूर्ती कर रही है।

इंटरनेट के आने से वेश्यावृत्ति के अर्थ में भी बदलाव आया है पहले वेश्यावृत्ति का मतलब सिर्फ शारीरिक सम्बन्ध ही हुआ करता था, परन्तु इंटरनेट पर वेबकैम (वेबकैमरा) के माध्यम से ऑन डिमान्ड सेक्स परोसे जा रहे हैं जिसमें इंटरनेट के एक तरफ बैठा व्यक्ति इंटरनेट कैमरे के माध्यम से दूसरी तरफ बैठी सेक्सवर्कर के विभिन्न शारीरिक मुद्राओं और क्रियाओं को देखकर ही अपनी यौन उत्कंठाओं की पूर्ति करता है।

आजकल लोगों की इस तरह की यौन उत्कंठाएं टेलीविज़न पर या फिल्मों में उत्तेजक दृथ्यों तथा पत्र-पत्रिकाओं में छपने वाले अर्धनग्न एवं नग्न तस्वीरों को देखकर भी पूरी होती हैं ।

वेश्यावृत्ति का वैश्विक परिदृश्य हो या राष्ट्रीय परिदृश्य इस बात से कतई इंकार नहीं किया जा सकता कि इस पेशे को बढ़ावा देने में मीडिया ने कोई कोर-कसर छोड़ी है । चाहे वह टेलीविज़न के माध्यम से हो, पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से हो या इन्टरनेट के माध्यम से। न्यू-मीडिया के रूप में पहचान बनाने वाले इंटरनेट ने तो इस पेशे को बढ़ावा देने में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है न्यू मीडिया का दूसरा साधन मोबाइल या टेलिफोन भी एमएमएस और एमएमएस के जरिए इसे प्रोत्साहित करने में संलिप्त है। जिसमें इसकी मदद करते हैं अखबार और पत्रिकाओं में छपने वाले वे विज्ञापन जिसमें लिखा होता है कि मनचाही बातें करने के लिए कॉल करें इस नम्बर पर, कॉल करें फलांने-फलांने नम्बर पर और करें चटपटी बातें आदि। और पत्र-पत्रिकाओं की तरह एडल्ट मैग्जिन भी मीडिया का ही हिस्सा है। क्या वह वेश्यावृत्ति को बढ़ावा देने में मददगार साबित नहीं होतीं? चाहे वह PLAY BOY श्रेणी की पत्रिकाएं ही क्यों न हो।

कुछ समय पहले एक राष्ट्रीय टेलिविजन चैनल पर आने वाला एक कार्यक्रम दो हफ्तों तक वेश्यावृत्ति पर ही केन्द्रित था। इस कार्यक्रम में दिखाया गया कि बॉलीवुड की कई कथित अभिनेत्रियां और मशहूर मॉडल देह व्यापार में लिप्त हैं। इसी कार्यक्रम में यह भी दिखलाया गया था कि दिल्ली के संभ्रान्त घरों की लड़कियां भी अपने खर्चों के लिए देह व्यापार करने लगी हैं। यह कार्यक्रम था - स्टार टीवी पर आने वाला `रेड अलर्ट` क्या इस कार्यक्रम के माध्यम से सिर्फ समाचार परोसा जा रहा था? क्या यह कार्यक्रम उन लड़कियों को जो अभिनेत्रियों एवं स्टार मॉडलों को अपना `रोलमॉडल` मानती हैं, के लिए गाढ़ी कमाई का रास्ता नहीं दिखला रहा था?

ऐसे कार्यक्रम विशुद्ध रूप से टेलीविजन चैनलों के बीच दर्शक खींचने के लिए बढ़ती प्रतिस्पर्धा का परिणाम है। जिसका सामाजिक सरोकारों से दूर-दूर तक कोई नाता नहीं होता। विदेशों में वेश्यावृत्ति एवं वेश्यालयों से सम्बन्धित छपने वाले विज्ञापन भी प्रोस्टिच्युशन कैम्पनींग का ही हिस्सा है।

1 comment:

Dr. R. Prakash said...

सेक्स वर्करों की दुनिया आज भी वैसी ही है। अगर कुछ बदला है तो वह है समाज का नज़रिया। जिसकी वजह से अब समाज का एक तबका मोटी रकम के बदले चोरी छुपे ही सही लेकिन किसी के भी घर में किसी भी वक्त रेड लाइट इलाके में मिलने वाली सुविधा उपलब्ध कराने को तैयार है। यानि अब रेड लाइट एरिया का रुपांतरित स्वरूप का कारोबार जंगल के आग की तरह फैल रहा है। दूसरे शब्दों में कह सकते हैं पारंपरिक रुप से देह व्यापार के धंधे में लगे लोगों के कारोबार पर आधुनिक जमाने की कॉलगर्ल्स के नेटवर्क ने कब्जा जमा लिया है। रही बात रेड लाइट एरिया की तो वहां आज भी घनघोर अंधेरा चारों तरफ फैला हुआ है।