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यह पोस्ट जिम्मेदार कौन? के आगे की कड़ी है उम्मीद है विषय की गम्भीरता इस पोस्ट में भी बनी रहेगी..
सेक्सवर्कर्स शब्द वेश्यावृति में संलिप्त लोगों के लिए प्रयोग में लाया जाता है जिसके पीछे तर्क यह है कि वेश्यावृति करने वाले लोग भी कामगार अर्थात `वर्कर्स´ ही होते है। परन्तु भारतीय संदर्भ में वेश्यावृति आज भी एक प्रचलित शब्द है, जिसका अंग्रेजी 'Prostitution' है जो लैटिक 'Prostare' के आधार पर बना है। वेश्यावृति आदिकाल से हमारे समाज, देश और विश्व का हिस्सा है। इसे सामाजिक स्वीकृती भी प्राप्त रही है तथा अलग-अलग जगहों पर इसे विधि और परंपरा के आधार पर उचित भी ठहराया जाता रहा है । आधुनिक यांत्रिक समाज में यह हमारी विवशता, मानसिक विक्षेप, भोग विलासिता एवं निरन्तर बढ़ती हुई आंतरिक कुंठा के क्षणिक उपचार का द्योतक है, परन्तु यह हमारे विघटनशील समाज के सहज अंग के रूप में हमेशा से विधमान रही है। हमारी सामाजिक स्थिति में बदलाव जरूर आते रहे हैं। किन्तु इसका अस्तित्व अक्षुण्ण एवं अप्रभावित रहा है।
यह कहना बहुत ही मुश्किल है कि आज के सेक्सवर्कर्स की मातृसंस्था वेश्यावृति की शुरूआत कैसे हुई । यह माना जाता है कि यह दुनिया के सबसे पुराने पेशों (Profession) में एक है । यह एक पुराना व्यापार है जिसका विकास आवश्यक्ता के कारण कम, किन्तु विवशता के कारण अधिक होता है। अलग-अलग जगहों पर इसे विधि और परम्परा के आधार पर उचित भी ठहराया जाता है । इसके बावजूद इसे एक सामान्य सामाजिक संस्था के रूप में कभी भी स्वीकार नहीं किया गया । सेक्सवर्कर्स या वेश्यावृति के संदर्भ में एक धारणा, जो अदिकाल से चली आ रही है उसे आज भी समाजशास्त्री यथावत स्वीकार करते हैं की
``सेक्सवर्कर्स या वेश्यावृति हमारे समाज के लिए एक आवश्यक बुराई है।´´
पर दूसरी तरफ अक्सर ही यह भी सुनने को मिलता है कि यह वर्ग समाज का कलंक है और देह से जुड़ा यह व्यापार समाज को दुषित करता है, इससे सम्बन्धित जब भी नैतिकता, अपराध, संकट, स्वास्थ्य अथवा इसी प्रकार की दूसरी विपत्तियों की बात होती है तो हमारा समाज इनसे संवेदना व्यक्त करने के बजाय धृणा से मुंह मोड़ लेता है ।
अगर हम वैश्विक संर्दभ में वेश्यावृति के इतिहास की बात करें तो प्राचीन समय में वेश्यावृति का धार्मिक अनुश्ठानों से सम्बन्ध रहा है। कई ऐसे प्रमाण मिले हैं, जिनके अनुसार विभिन्न देशों में इसे प्रोत्साहित किया जाता रहा है। मिस्त्र, असीरिया, बेबीलोनिया, पर्शिया आदि देशों में देवियों की पूजा एवं धार्मिक अनुश्ठानों में विभिन्न वासनायुक्त तथ्यों की प्रमुखता रहती थी तथा देवस्थान भी इससे अछूते नहीं थे ।
वैश्विक संदर्भ में देखें तो यहूदी समुदाय इसके लिए अपवाद थे । वेश्यावृति यहूदी स्त्रियों के लिए निषिद्ध थी। यह प्रवासी स्त्रियों तक ही सीमित थी। परन्तु धर्माध्यक्षों की कन्याओं के अतिरिक्त अन्य स्त्रियों द्वारा नियमभंग करने पर किसी प्रकार के दण्ड का विधान नहीं था । परन्तु ऐसी स्त्रियों का प्रवेश देवस्थानों और यरूसलम में वर्जित था ।
प्राचीन युनान में वेश्यालयों पर राज्य का अधिकार था जो क्षेत्रविशेष में सीमित थे । वेश्याओं का परिधान विशिष्ट होता था तथा सार्वजनिक स्थलों पर उनका प्रवेश निषिद्ध था। वे किसी प्रकार के धार्मिक अनुश्ठान में भाग नहीं ले सकती थी । परन्तु समय की गति के साथ कानुनी बाध्यताएँ टूटने लगीं और विनियमों को क्रियाशील तथा प्रभावकारी बनाए रखना प्रशासन के लिए दुश्कर होता गया । देवी के मंदिर में सहस्त्रों वेश्याएँ सेविका रूप में रहती थी और देवीपूजा यौनाचार पर आवरण बन गई थी ।
रोम मे भी वेश्याओं की स्थिति कमोवेश यूनान की तरह ही थे। रोम में वेश्याओं के लिए पंजीकरण आवश्यक था साथ ही उन्हें राजकीय कर भी देना पड़ता था तथा भिन्न परिधान धारण करना पड़ता था ।
( इंतजार किजिए आगे अभी बहुत कुछ बाकी है.... )
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सेक्सवर्कर्स शब्द वेश्यावृति में संलिप्त लोगों के लिए प्रयोग में लाया जाता है जिसके पीछे तर्क यह है कि वेश्यावृति करने वाले लोग भी कामगार अर्थात `वर्कर्स´ ही होते है। परन्तु भारतीय संदर्भ में वेश्यावृति आज भी एक प्रचलित शब्द है, जिसका अंग्रेजी 'Prostitution' है जो लैटिक 'Prostare' के आधार पर बना है। वेश्यावृति आदिकाल से हमारे समाज, देश और विश्व का हिस्सा है। इसे सामाजिक स्वीकृती भी प्राप्त रही है तथा अलग-अलग जगहों पर इसे विधि और परंपरा के आधार पर उचित भी ठहराया जाता रहा है । आधुनिक यांत्रिक समाज में यह हमारी विवशता, मानसिक विक्षेप, भोग विलासिता एवं निरन्तर बढ़ती हुई आंतरिक कुंठा के क्षणिक उपचार का द्योतक है, परन्तु यह हमारे विघटनशील समाज के सहज अंग के रूप में हमेशा से विधमान रही है। हमारी सामाजिक स्थिति में बदलाव जरूर आते रहे हैं। किन्तु इसका अस्तित्व अक्षुण्ण एवं अप्रभावित रहा है।
यह कहना बहुत ही मुश्किल है कि आज के सेक्सवर्कर्स की मातृसंस्था वेश्यावृति की शुरूआत कैसे हुई । यह माना जाता है कि यह दुनिया के सबसे पुराने पेशों (Profession) में एक है । यह एक पुराना व्यापार है जिसका विकास आवश्यक्ता के कारण कम, किन्तु विवशता के कारण अधिक होता है। अलग-अलग जगहों पर इसे विधि और परम्परा के आधार पर उचित भी ठहराया जाता है । इसके बावजूद इसे एक सामान्य सामाजिक संस्था के रूप में कभी भी स्वीकार नहीं किया गया । सेक्सवर्कर्स या वेश्यावृति के संदर्भ में एक धारणा, जो अदिकाल से चली आ रही है उसे आज भी समाजशास्त्री यथावत स्वीकार करते हैं की
``सेक्सवर्कर्स या वेश्यावृति हमारे समाज के लिए एक आवश्यक बुराई है।´´
पर दूसरी तरफ अक्सर ही यह भी सुनने को मिलता है कि यह वर्ग समाज का कलंक है और देह से जुड़ा यह व्यापार समाज को दुषित करता है, इससे सम्बन्धित जब भी नैतिकता, अपराध, संकट, स्वास्थ्य अथवा इसी प्रकार की दूसरी विपत्तियों की बात होती है तो हमारा समाज इनसे संवेदना व्यक्त करने के बजाय धृणा से मुंह मोड़ लेता है ।
अगर हम वैश्विक संर्दभ में वेश्यावृति के इतिहास की बात करें तो प्राचीन समय में वेश्यावृति का धार्मिक अनुश्ठानों से सम्बन्ध रहा है। कई ऐसे प्रमाण मिले हैं, जिनके अनुसार विभिन्न देशों में इसे प्रोत्साहित किया जाता रहा है। मिस्त्र, असीरिया, बेबीलोनिया, पर्शिया आदि देशों में देवियों की पूजा एवं धार्मिक अनुश्ठानों में विभिन्न वासनायुक्त तथ्यों की प्रमुखता रहती थी तथा देवस्थान भी इससे अछूते नहीं थे ।
वैश्विक संदर्भ में देखें तो यहूदी समुदाय इसके लिए अपवाद थे । वेश्यावृति यहूदी स्त्रियों के लिए निषिद्ध थी। यह प्रवासी स्त्रियों तक ही सीमित थी। परन्तु धर्माध्यक्षों की कन्याओं के अतिरिक्त अन्य स्त्रियों द्वारा नियमभंग करने पर किसी प्रकार के दण्ड का विधान नहीं था । परन्तु ऐसी स्त्रियों का प्रवेश देवस्थानों और यरूसलम में वर्जित था ।
प्राचीन युनान में वेश्यालयों पर राज्य का अधिकार था जो क्षेत्रविशेष में सीमित थे । वेश्याओं का परिधान विशिष्ट होता था तथा सार्वजनिक स्थलों पर उनका प्रवेश निषिद्ध था। वे किसी प्रकार के धार्मिक अनुश्ठान में भाग नहीं ले सकती थी । परन्तु समय की गति के साथ कानुनी बाध्यताएँ टूटने लगीं और विनियमों को क्रियाशील तथा प्रभावकारी बनाए रखना प्रशासन के लिए दुश्कर होता गया । देवी के मंदिर में सहस्त्रों वेश्याएँ सेविका रूप में रहती थी और देवीपूजा यौनाचार पर आवरण बन गई थी ।
रोम मे भी वेश्याओं की स्थिति कमोवेश यूनान की तरह ही थे। रोम में वेश्याओं के लिए पंजीकरण आवश्यक था साथ ही उन्हें राजकीय कर भी देना पड़ता था तथा भिन्न परिधान धारण करना पड़ता था ।
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