Tuesday, October 23, 2012

आधुनिक प्रबंधन में वैदिक पाठ की प्रासंगिकता पर राष्ट्रीय कांफ्रेंस का आयोजन


वर्तमान समय में आधुनिक और कुशल प्रबंधन का महत्त्व दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। मानव जीवन की बढ़ती जटिलताएं प्रबंधन रणनीतिकारों के समक्ष एक वैश्विक चुनौती बनकर उभरा है। इस संदर्भ में भारतीय मनीषियों ने प्रकृति और मानव संबंध की जटिलताओं को बहुत पहले ही समझ लिया था। इसलिए समग्र विकास  जैसी संकल्पना के मूल में उन्होंने व्यक्ति में आत्म नियंत्रण के साथ-साथ नैतिक एवं मूल्यपरक गतिविधियों पर अधिक जोर दिया।
उपरोक्त को ध्यान में रखते हुए आधुनिक प्रबंधन में वैदिक पाठ की प्रासंगिकता विषय पर दो दिवसीय (17-18 नवंबर 2012) राष्ट्रीय कांफ्रेंस आयोजित हो रहा है। वैदिक फाउंडेशन ऑफ इंडियन मैनेजमेंट (आइसोल रिसर्च फाउंडेशन की एक इकाई) द्वारा, तेजपुर विश्वविद्यालय, असम के बिजिनेस एडमिनिस्ट्रेसन विभाग की मेजबानी में यह राष्ट्रीय कांफ्रेंस का आयोजन किया जा रहा है। इस राष्ट्रीय कांफ्रेंस का फोकस बिंदु यह है कि वेद, उपनिषद्, पुराण, गीता और रामायण के पाठ में निहित नेतृत्व और प्रबंधन की गूढ़ बातों को आधुनिक प्रबंधकीय शैली में अपनाकर मानवीय जीवन व सांगठनिक लक्ष्यों को बहुत आसानी से कैसे प्राप्त किया जा सकता है। इस दो दिवसीय कांफ्रेंस में देश भर से प्रबंधन, राजनीति, अर्थशास्त्र, भारतीय दर्शन, मीडिया आदि विषय के विद्वानों, व्यावसायिक प्रतिनिधियों और शोधार्थियों से 30 अक्टूबर 2012 तक विस्तृत व पूर्ण आलेख आमंत्रित किए गए हैं ताकि विषय की गंभीरता के साथ न्याय किया जा सके।
हाल के वर्षों में वैश्विक मंदी ने हमारे लगभग सभी स्थापित प्रतिमानों को नए सिरे से खारिज किया है। भारतीय धार्मिक ग्रंथों में नैतिकता के पाठ को हमेशा मानवीय उद्यमिता से जोड़कर देखा गया है। नियोजन, संगठन, समन्वय, निदेशन और नियंत्रण की लोकतांत्रिक शैली को परंपरागत जीवनदृष्टि और आधुनिक प्रबंधकीय नीतियों के एकीकरण द्वारा ही विकसित किया जा सकता है। वित्तीय प्रबंधन, निर्णयन, गुणवत्ता प्रबंधन, विपणन प्रबंधन, परियोजना प्रबंधन सहित रणनीति प्रबंधन के आधार एवं शैली को भारतीय प्राचीन ग्रंथों में वर्णित पंचकोष सिद्धांत, पुरूषार्थ सिद्धांत और गुण सिद्धांत में ढूंढा जा सकता है। सीमित संसाधनों द्वारा असीमित आवश्यकताओं की पूर्ति के मानवीय प्रयास बेहतर प्रबंधन के बिना असंभव है। प्राधिकार और जवाबदेही की उपयोगिता एवं महत्त्व को समझने तथा सांगठनिक जटिलताओं के निदान में वैदिक ग्रंथों को बतौर आधार ग्रंथ अपनाया जा सकता है। इन्हीं तथ्यों पर वृहद विचार मंथन इस दो दिवसीय (17-18 नवंबर 2012) राष्ट्रीय कांफ्रेंस का मूल उद्देश्य है।
कांफ्रेंस की संयोजिका प्रो. सुनीता सिंह सेनगुप्ता, संस्थापक वैदिक फाउंडेशन ऑफ इंडियन मैनेजमेंट (आइसोल रिसर्च फाउंडेशन की एक इकाई) हैं। यह कांफ्रेंस वैदिक फाउंडेशन ऑफ इंडियन मैनेजमेंट (आइसोल रिसर्च फाउंडेशन की एक इकाई) द्वारा आयोजित होने वाले कांफ्रेंसों के श्रृंखला की एक कड़ी है। इस श्रृंखला में इससे पहले 19 से 21 अप्रैल 2012 को एक इंटरनेशनल कांफ्रेंस का आयोजन हरिद्वार में किया गया था तथा अगला इंटरनेशनल कांफ्रेंस का आयोजन 18 से 19 मई  2013 को मैंगलोर में होना है।

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