Monday, February 7, 2011

कौन देता है साथ विपत्तियों में- अपने या पराए?

जीवन में कई तरह के दौर आते हैं| सुख और दुःख सिक्के के दो पहलू हैं| कभी मस्ती के पल नसीब होते हैं तो कभी गम का पहाड़ टूट पड़ता है| इन दोनों के बिना इन्सान दूसरों को तो छोड़िये अपनी भी परख नहीं कर पाता है| यह कहना बहुत ही मुश्किल है कि विपत्ति में कौन साथ देता है- अपने या पराए| यह सब परिस्थितियों पर निर्भर करताहै|
कभी ऐसा होता है कि अपने ही पूरी तरह समर्पित होते हैं| और कभी अपने ही बेसहारा छोड़ जाते हैं और पराए दर्द बांट लेते हैं और कभी-कभी इंसान विपत्तियों से अकेला ही जूझता है| बिल्कुल एक ऐसे नाव की तरह जिसका कोई किनारा नहीं होता और वक्त के थपेड़े सहता है| इसलिए निष्कर्षतः यही कहा जा सकता है कि "विपत्ति या सुख-दुःख वक्त के पाबन्द हैं| अगर वक्त आपके साथ है तो दुनिया आपके साथ है, पराये भी अपने हैं और नहीं तो अपने भी पराये हैं|

('हिन्दुस्तान' दैनिक से साभार, यह वर्षों पहले 'हिन्दुस्तान' दैनिक के किसी अतिरिक्तांक में छपा था, जिसकी तिथि और इस लेख के लेखक ना नाम मुझे याद नहीं| अगर किसी को इसकी जानकारी है तो कृपया वह जरूर बताएं ताकि मैं उसका प्रकाशन यहां कर सकूं, धन्यवाद|)

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