Thursday, April 22, 2010

“टेलीविजन समाचारों के अंतर्वस्तु में बदलाव दर्शकों की मांग के अनुरूप हुए हैं ” - हर्ष रंजन



टेलीविजन समाचारों के अंतर्वस्तु में बदलाव आया है और यह बदलाव दर्शकों के मांग की अनुरूप हुए हैं यह वक्तव्य महात्मा गांधी अन्तराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय के जनसंचार विभाग में आयोजित विशेष व्याख्यान माला `मीडिया संवाद` में राष्ट्रीय टेलीविजन समाचार चैनल `आज तक` के वरिष्ठ प्रोड्यूसर हर्ष रंजन ने व्याख्यान देते हुए कहा कि भावी पीढ़ी की पत्रकारिता को बेहतर बनाने के लिए हमें पत्रकारिता के दृष्टिकोण में रहे बदलाव को स्वीकार करना होगा। टेलीविजन पत्रकारिता को लेकर उनका कहना था कि टेलीविजन समाचारों के अंतर्वस्तु में जो बदलाव आए हैं, वह 90 के दशक में उदारीकरण के साथ शुरू हुए। यह बदलाव मीडिया ने अपने अनुसार नहीं किए बल्कि यह दर्शकों की अभिरूचि को ध्यान में रखते हुए किया गया है। जिसके कारण समाचार की परिभाशा भी बदली है। उनका कहना था कि पहले लोग किसी समाचार को कम समय में देखना चाहते थे पर आज समाचार की हर बारीकियों को देखना चाहते हैं। इन सब बातों के बीच उन्होंने स्वीकार किया कि सामग्री परोसने के तरीके में गिरावट आयी है।
उनका कहना था कि हर खबर के पीछे कुछ व्यावसायिक हित छुपे होते हैं और यह जरूरी भी है। क्योंकि इसके बिना चैनलों को जिंदा रखना सम्भव नहीं है। मीडिया ट्रायल को सही ठहराते हुए उन्होंने कहा कि अगर हम आरूशी हत्याकाण्ड को उदाहरण के रूप में ले तो अगर मीडिया द्वारा इस खबर पर लगातार नज़र नहीं रखी जाती तो यह मामला सी.बी.आई. को नहीं सौपा जाता और फिर उत्तर प्रदेश पुलिस के कारनामें जनता के सामने नहीं आते।
इस सब के बावजूद उनका यह मानना था कि मीडिया से भी कभी-कभी गलतियां हो जाती है, जिसे यथासम्भव दूर करने का प्रयास किया जा रहा है। उनका कहना था कि मीडिया फैसला सुनाने का अधिकार नहीं रखता, उसे सिर्फ सवाल खड़े करने चाहिए।
इस अवसर पर जनसंचार विभाग के प्रोफेसर एवं अध्यक्ष डॉ. अनिल के. रायअंकितने हर्ष रंजन का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि भावी पीढ़ी की पत्रकारिता को बेहतर बनाने का दायित्व युवा कंधो पर है।
कार्यक्रम में विभाग के शिक्षकों सहित मीडिया के विद्यार्थियों एवं शोधार्थियों की भागीदारी रही।

1 comment:

honesty project democracy said...

मैं इस बात से सहमत नहीं हूँ की समाचारों के विषय वस्तु में बदलाव दर्शकों के अनुरूप हुए है ,बल्कि मेरा सवाल है की अगर ऐसा हुआ होता तो न्यूज़ चेनलों की हालत कहीं बेहतर होती ? मैं इस बात के पक्ष में भी नहीं हु कि समाचारों के पीछे व्यवसायिक हित को रखा जाना चाहिए / व्यवसायिक हितों से समाचार कि सत्यता पर आंच आती है /