Tuesday, March 23, 2010

सेक्सवर्करों की वैश्विक एवं राष्ट्रीय स्थिति



आधुनिकता की चकाचौंध ने सबको अपनी तरफ आकर्षित किया है । समाज के हर तबके की मानसिकता बदल गई है । लोगों की मानसिकता का बदलाव समाज से तालमेल स्थापित नहीं कर पा रहा है । आज लोगों की महत्वाकांक्षा बढ गई है और वह उसे हर हाल में पूरा करना चाहते हैं । कुछ समय पहले तक किसी भी अपराध या दुराचार को व्यक्तिगत मामला कहकर टाला नहीं जा सकता था, लेकिन आज हर किसी ने अपने को सामाजिक जिम्मेदारी से मुक्त कर लिया है । रही - सही कसर संयुक्त परिवारों के टूटने से पूरी हो गई । व्यक्ति आत्मकेंद्रित हो गया है । समाज और परिवार दो महत्वपूर्ण इकाई थे जो व्यक्ति के लिए सपोर्ट-सिस्टम का काम करते थे। व्यक्ति सिर्फ अपने बीबी-बच्चों के प्रति ही नहीं, बल्कि पूरे परिवार के प्रति जिम्मेदार होता था । पास-पड़ोस से जो मतलब होता था, आज वह खत्म होता जा रहा है। आज हमारे पड़ोस में कौन रहता है, इसकी खबर न तो हमको रहती है और न रखना चाहते हैं। आज यदि आप अपने पड़ोसी से सम्बंध रखना भी चाहें तो शायद वह ही सम्बंध रखने को इच्छुक न हो । पड़ोस का डर और सम्मान अब नहीं रहा । अपनी जड़ों, समाज और संस्कृति से हम कट गए हैं । पुराने मूल्यों का टूटना लगातार जारी है । आधुनिकतम जीवनशैली अभी तक कोई मूल्य स्थापित नहीं कर पाई है, जिसकी मान्यता और बाध्यता समाज पर हो । आज का समाज संक्रमण के दौर से गुजर राह है । कोई मूल्य न रहने से नैतिक बंधन समाप्त हो जा रहा है । यह स्वच्छन्दता ही गलत राह पर ले जाने में सबसे बड़ी भूमिका निभा रहा है । आज हर आदमी उच्च वर्ग की नकल कर रहा है, इसके लिए चाहे जो रास्ता अपनाना पड़े.... । मेरे पास भी वह कार होनी चाहिए जो पड़ोसी के पास है । दफ़्तर में सब के बराबर भले ही वेतन न हो, लेकिन हम किसी से कम नहीं। यही वजह है कि एक समय था जब समाज के निचले तबके अथवा छल-कपट से कोठे पर पहुंचा दी गई महिलाएं ही वेश्यावृति के पेशे में थीं, अब तो समाज के हर वर्ग के लोग इसमें शामिल हैं । खास कर पढी-लिखी उच्च और मध्यम घराने की लड़कियां तो ज्यादा हैं । संकुचित मानसिकता, परिवारों का विघटन और लाभ के लिए यह पेशा दिनों-दिन बढता जा रहा है। मनोविज्ञान की भाषा में इसे विकृति कहा जाता हैं । पहले हम वही सामान खरीदते थे जिसकी जरूरत होती थी । आज लोग दुकानों में घुसने पर सब कुछ खरीद लेना चाहते हैं। घर-परिवार से तो हर आदमी को एक निश्चित राशि ही मिलती है । जिससे इसके लिए उन्हें गलत रास्ता अख़्तियार करना पड़ता है । घर-परिवार से दूर रहने वाली कुछ इस तरह की महत्वाकांक्षी लड़कियां दलालों के माध्यम से ऐय्याश लोगों के पास चली जाती हैं और उनको अपने इस काम से कोई अपराधबोध भी नहीं होता। कुछ तो पैसे के लिए फार्म हाउस तक जाती हैं । आज फार्म हाउस और कोठियां सबसे सुरक्षित स्थान बन गए हैं । ऐसे स्थानों पर जाने वाली लड़कियां एक रात में ही हजारों कमा रही हैं। इसका कारण पूछने पर पता चलता है कि अपनी असीमित इच्छाओं की पूर्ति के लिए आज बडे़ घरों की लड़कियां भी इस पेशे में उतर आई हैं । विदेशों में तो डॉक्टर और इंजीनियर की सम्मानित नौकरी पर लात मार कर ढेर सारी महिलाएं इसमें आई हैं । कम समय में ज्यादा पैसा कमाना इसका मुख्य कारण है ।

सेक्स की कुंठा से भी महिलाएं इस पेशे में आती है। इस बीमारी को निम्फोमेनियाकहते हैं । ऐसी महिलाएं पैसा तो नहीं लेती है, लेकिन यह भी अनैतिक ही है । सेक्स कारोबार में इनका प्रतिशत सिर्फ आठ है। शारीरिक सुख और पैसा सबसे ऊपर हो गए हैं। आज जिसके पास पैसा नहीं है उसके पास लोगों की निगाह में कुछ भी नहीं है । पैसे में ही मान-सम्मान, इज्जत और सारा सुख निहित मान लिया गया है । एक दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि शहरों की आबादी जिस तरह से बढ रही है उसमें देश के एक छोर से दूसरे छोर के लोग आसपास रहते हुए भी एक -दूसरे से घुल-मिल नहीं पाते हैं । यही कारण है कि गावों की अपेक्षा शहरों में सेक्स रैकेट ज्यादा हैं ।

अतिमहात्त्वाकांक्षा तथा गरीबी से लेकर नैतिक मूल्यों के पतन तक अनेक ऐसे कारण मिलते है जिससे समाज में सेक्स रैकेट या वेश्यावृत्ति जैसी चीजें लगातार अपना पांव फैला रही हैं। महिलाओं तथा युवा लड़कियों में खासतौर पर आर्थिक बदहाली की वजह से ही यह कुरीति पनपती है । यद्यपि वेश्याओं की कुल संख्या का पता लगाना यर्थाथ रूप से सम्भव नहीं है लेकिन एक हालिया आकलन में जानकारी दी गई है कि सिर्फ भारत में लगभग 30 लाख से अधिक महिला यौनकर्मी हैं । इन यौनकर्मियों में खासतौर पर 15 से 35 वर्ष के आयु वर्ग की महिलाएं एवं लड़कियां शामिल हैं । इस आयु वर्ग से 90 प्रतिशत यौनकर्मी हैं पैसा कमाने की इच्छा तथा यौन क्रिया के प्रति उत्सुकता के अतिरिक्त विभिन्न सेवा क्षेत्र में अतिथि सत्कार करने की परम्परा का उदय भी इस पेशे को प्रोत्साहित करती रही है

(क्रमशः)

1 comment:

कृष्ण मुरारी प्रसाद said...

व्यबस्था ठीक तब हो जब आँखों में पानी हो.....
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शहीदों को शत् शत् नमन......
आज सुबह से ही मैं पानी पानी हूँ...मुझे इस विशेष दिन की याद ही नहीं थी........
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विश्व जल दिवस....नंगा नहायेगा क्या...और निचोड़ेगा क्या ?
लड्डू बोलता है ....इंजीनियर के दिल से....
http://laddoospeaks.blogspot.com/2010/03/blog-post_22.html