Wednesday, October 29, 2008

चले गए दादा


-विवेक विश्वास
आखीरकार दादा चले गए । और इसी के साथ खत्म हो गई दादा की चमकदार क्रिकेटीय पारी । वह क्रिकेटीय पारी जिसने एक शानदार टेस्ट मैच की तरह कई उतार -चढ़ाव देखे । इस उतार -चढ़ाव भरे कैरियर में दादा और विवादों का चोली -दामन का साथ रहा है । विवादों के साथ उनका नाम उनकी पहली ही सीरिज से जुड़ गया था , जो कि आखिर तक चला। आस्ट्रेलिया के साथ टेस्ट सीरिज के लिए उनके चयन के साथ ही यह खबर आने लगी थी कि यह चयन एक ´डील` के तहत हुआ है।

समकालीन आस्ट्रेलियाई क्रिकेट कप्तान स्टीव वॉ के साथ हुए नोक-झोंक तथा लॉडर्स की बाल्कोनी में फहराये टी-शर्ट को लेकर पश्चमी मीडिया एवं वहाँ के क्रिकेटरों ने उन्हें खलनायक बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी । जितना जी चाहा उतना आलोचना उस बात के लिए करते रहे, जो वहां के क्रिकेटर बहुत पहले से करते आ रहे थे।

हद तो तब हो गई, जब भारतीय मीडिया एवं पूर्व क्रिकेटर भी उस भेड़चाल में शामिल होकर नैतिकता और भारतीय परम्परा की दुहाई देने लगे। महाभारत के समय श्रीकृश्ण के द्वारा कही गई उस बात को भूल गए जिसमें उन्होने कहा था कि गलत करने वाले के साथ गलत करने में कोई अधर्म नहीं है।

परन्तु दादा को हमेशा एक ऐसे जुझारू खिलाड़ी के रूप में याद किया जायेगा जिसने कभी हार नहीं मानी, जिसने टीम के हर खिलाड़ी को एक सूत्र में बांधने का काम किया जिसने खिलाड़ियों में जीत की भूख पैदा की। विपक्षी टीम को उसी के अन्दाज में जवाब देना तथा बल्लेबाजों को विपक्षी गेंदबाजों की आँखों में आँख डालना सिखाया।

मोहिन्दर अमरनाथ के बाद सौरव गांगुली ही "रियल कमबैक" मैन रहे।
इस तरह की कई और घटनाएं घटी और दादा के साथ विवादों की फेहरिस्त में जुड़ती चली गई। वर्तमान समय में विवाद हर बड़ी चीज का पर्यायवाची शब्द बन गया है। बल्लेबाजी में जहॉ इस खब्बू बल्लेबाज को ऑफ साइड का भगवान कहा गया वहीं गेंदबाजी में भी पार्टटाईमर के रूप में टीम को सहयोग दिया। एकदिवसीय मैंचों में सौरव के नाम 100 विकेट है। यह रिकॉर्ड किसी भी खिलाड़ी के गेंदबाजी छमता का गवाह हो सकता है। खास तौर पर तब जब उसे पार्टटाईमर कहा जाता हो। उनकी कप्तानी क्षमता का अन्दाजा अजय जडेजा के उस बयान से लगाया जा सकता है, जसमें जडेजा ने कहा था कि कप्तानी के लिए सौरव को पचास की आयु में भी बुलाया जा सकता है।
जब गांगुली सन्यास की घोषणा कर चुके हैं तब भी यह नहीं कहा जा सकता कि क्रिकेट उनका सबसे प्रिय खेल था क्योंकि उनका पहला क्रेज फुटबाल के प्रति रहा है और एक बार वह कह भी चुके हैं कि क्रिकेट में वह अपने कैरियर को ध्यान में रखकर आए थे। चूँकि अपने जीवन के बेहतरीन क्षणों में सौरव ने क्रिकेट को जिया है, इसलिए एक खिलाड़ी के रूप में न सही किसी अन्य रूप में वह राष्ट्रीय टीम को अपनी सेवाएँ दे सकते हैं। वैसे दादा के गगनचुंबी छक्कों की तलाश में क्रिकेट प्रेमियों की ऑखें हमेशा दादा को क्रिकेट मैदान पर ढूंढती रहेंगी।

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