Thursday, May 6, 2010

चाँद को बख्श दो


सुन सुन के आशिकी के तराने

पक गया है

चाँद

चाँद को बख्श दो

वो थक गया है

शक्ल जब अपने यार की

चाँद से मिलाते हैं

आसमान में चाँद मिया

देख देख झल्लाते हैं

अपनी सूरत पहचानने में

दम उनका चुक गया है

चाँद को बख्श दो

वो थक गया है

बे- बात की बात

सारी रात किया करते हैं

हाल-ए-दिल सुना कर

जबरदस्ती

चाँद का सुकून

पीया करते हैं

तन्हाई, बेवफाई, आशनाई

के किस्सों से

उसका माथा दुःख गया है

चाँद को बख्श दो

वो थक गया है

कभी दोस्त, कभी डाकिया

कभी हमराज़ बनाते हैं

उसकी कभी सुनते नहीं

बस अपनी ही सुनाते हैं

इस एकतरफा रिश्ते से

दम उसका घुट गया है

चाँद को बख्श दो ..........
- Sonal Rastogi
कुछ कहानियाँ,कुछ नज्में ब्लॉग पर पूर्व में प्रकाशित

कुछ कहती है तस्वीरें - 3



इन झुग्गियों पर लगे इस DTH के एंटीने को क्या माना जाए?
संचार
भूख या बाज़ार ?
कुछ
कुछ जवाब हम सब के पास है, जरा उसे व्यक्त कर के देखिए......