इस तस्वीर में गांधीजी की तस्वीर टंगी दिखाई दे रही है। यह तस्वीर भारत की नहीं बल्कि पड़ोसी
देश नेपाल के सर्लाही जिला मुख्यालय स्थित ‘नेपाल नेत्र ज्योति संघ’ के कार्यालय
की है।
ऐसा देश जो हाल-फिलहाल तक हिंसा के आग में जलता रहा है और अभी
भी उस आग का धुआँ पूरी तरह से थम नहीं पाया है।
जहां राजतंत्र को समाप्त कर प्रजातंत्र की स्थापना का प्रयास हिंसा के रास्ते पर
चल कर ही किया गया और जहाँ की पहली प्रजातांत्रिक सरकार बंदूक के नोंक पर आजादी की
लड़ाई लड़ने वाले मओवादियों की बनी, वहाँ की दीवारों पर मार्क्स या माओ की जगह
अहिंसा के पुजारी मोहनदास कर्मचंद गांधी की तस्वीर एक सुखद आश्चर्य पैदा करने के
साथ-साथ हमें यह सोचने पर भी मजबूर करती है कि क्या बापू द्वारा अपनाए गए अहिंसा
के रास्ते का कोई भी विकल्प आधुनिक विश्व के पास है?
अगर
नहीं तब क्या विश्व समुदाय को हथियारों की होड़ से बाहर निकल कर शांतिपूर्ण विश्व
की स्थापना के लिए गंभीरतापूर्वक विचार नहीं करना चाहिए?
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