यह है महिला सशक्तिकरण का असली सच। कहते हैं एक तस्वीर लाख शब्दों के बराबर होती है। तब फिर इस तस्वीर की व्याख्या शब्दों से करने की जरूरत नहीं। बावजूद इसके कुछ शब्द लिखने से खुद को रोक नहीं पा रहा हूँ। क्या यह तस्वीर महिला चिंतकों, खुद को स्त्री अस्मिता की ध्वजवाहक/ध्वजवाहिका मानने वालों, महिला सशक्तिकरण तथा महिलाओं के उत्थान के नाम पर लाखों-करोड़ों डकारने वालों का मुँह नहीं चिढ़ा रही है। क्या स्वयंभू/स्वमान्यधन्य/स्वघोषित स्त्रीवादियों द्वारा दो-चार सेमिनार-कॉन्फ्रेन्सेज कर लेने से महिलाओं का उत्थान हो जाएगा? क्या महिलाएं सशक्त हो जाएंगी?
हम लाख सेमिनार-कॉन्फ्रेन्सेज करते रहें, जब तक हम महिलाओं, दलितों, गरीबों के नाम पर अघोषित मार्केटिंग कर अपनी जेब भरने की आदतों से बाज नहीं आएंगे, तब तक जमीनी स्तर पर किसी भी बदलाव की बात सोचना शेखचिल्ली के सपने के समान ही होगा और ऐसी तस्वीरें हर गली-मोहल्ले में हमारा माखौल उड़ाती रहेंगी।
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