मेरे यह शब्द अन्ना हजारे के वर्तमान अनशन के शुरू होने से पहले के हैं..
क्या भारत के राजनीतिक हलकों में सारे मुद्दे खत्म हो गए हैं? क्या भारतीय राजनीतिक पार्टियों तथा राजनेताओं को करने के लिए कुछ भी नहीं बचा है? क्या बाबा रामदेव और अन्ना हज़ारे को किनारे करने का काम सरकार ने पूरा कर लिया है? क्या भारत में भ्रष्टाचार अब पूरी तरह से काबू में आ गया है? क्या हर शहर, कस्बे, गाँव, गली-मोहल्ले तक सड़कें, बिजली पहुँचा दी गई हैं? क्या भारत के हर नागरिक तक शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं की पहुँच सुनिश्चित कर दी गई है? चलो इतना न सही तो कम से कम मनुष्य के जीवन जीने के लिए आवश्यक तीन मूलभूत सुविधाएँ- रोटी, कपड़ा और मकान तो भारत के हर नागरिक को मुहैया करा ही दी गई होगी?
अगर नहीं! तो सरकार इन मुद्दों पर ध्यान देने के बजाए सचिन तेंदुलकर को भारत रत्न देने के लिए इतना आतुर क्यों है? जैसा की अभी तक के नियमों के आधार पर खेल के क्षेत्र में भारत रत्न नहीं दिया जा सकता, ऐसी स्थिती में सचिन के लिए सरकार नियमों में आवश्यक बदलाव के लिए भी तैयार है और संभवत; इसके लिए प्रयास किया भी जा रहा है। क्या सचिन को भारत रत्न देना इतना महत्वपूर्ण है? अब विपक्ष कहेगी नहीं पहले ध्यानचंद को भारत रत्न मिलना चाहिए। विपक्ष जिस आधार पर सचिन से पहले ध्यानचंद को भारत रत्न का दावेदार मान रही है, वह समय आज की बात तो है नहीं। फिर आज का विपक्ष उस समय क्या कर रहा था जिस समय वह सत्तासीन था? सच तो यह है कि किसी भी राजनीतिक दल को न सचिन तेंदुलकर से कुछ लेना-देना है और न ही मेजर ध्यानचंद से। दरअसल सभी राजनीतिक दलों की नजरें इसके राजनीतिक लाभ पर है। सरकार उस अंधी जनता की सहानुभूति बटोरना चाहती है जिन्हें देश और समाज का विकास नहीं सचिन तेंदुलकर के बल्ले से रन चाहिए, तो विपक्ष इसलिए परेशान है की अगर वर्तमान सरकार ने सचिन तेंदुलकर को भारत रत्न दे दिया तो उसे इसका राजनीतिक लाभ कैसे मिलेगा।
ऐसा भी नहीं कि खेल के क्षेत्र में भारत रत्न देने से किसी तरह का परहेज होना चाहिए, परंतु देश में और भी मुद्दे हैं जिस पर पहले ध्यान देने कि जरूरत है और भारत रत्न जैसे सम्मान को प्रदान करने के पहले हमारे देश के राजनीतिक पार्टियों और राजनेताओं को लाभ-हानी के गणित से ऊपर उठकर सोचना चाहिए। क्योंकि भारत में एक मात्र खेल क्रिकेट ही नहीं खेला जाता। हाँ, आज यह भारत का सबसे लोकप्रिय खेल जरूर है, परंतु मेजर ध्यानचंद ने उस खेल के माध्यम से हमारे देश के लिए सम्मान अर्जित किया है जो खेल हमारे देश का राष्ट्रीय खेल है, पी.टी.उषा ने महिला होने के बावजूद एथलेटिक में तिरंगा के ऊंचाई को बढ़ाया। एक तरफ क्रिकेट में सचिन के योगदान के लिए सचिन को भारत रत्न से नवाजने की बात होती है तो दूसरी तरफ जिस विश्वनाथन आनंद ने एक नहीं अनेक बार शतरंज में दुनिया को भारत का लोहा मनवाया, उस विश्वनाथन आनंद के बारे में कई बार यह खबर आती है कि वह यहाँ के व्यवस्था और सरकार से रुष्ट होकर भारत कि नागरिकता छोड़ने पर विचार कर रहे हैं।
अनशन शुरू होने के पश्चात..
कहाँ हैं वह सचिन तेंदुलकर जिसे भारत रत्न देने के लिए सरकार एड़ी-चोटी एक की हुई थी, यहाँ तक कि नियमों में बदलाव करने से भी परहेज नहीं था। जिस मुद्दे को लेकर सारा देश उद्वेलित है, उस पर एक प्रतिक्रिया देने के लिए अब तक समय नहीं निकाल पाए हैं हमारे महान सचिन तेंदुलकर। क्या इनकी एक प्रतिक्रिया इनके व्यावसायिक हित को प्रभावित कर सकती है? अगर हाँ, तो व्यावसायिक हित का ख्याल रखने वाले सचिन तेंदुलकर को भारत रत्न देने के बारे में अब क्या ख्याल है?
1 comment:
इन सब पर पार्टी नें एजेंडा सेटींग किया है अभी मीडिया में कोल आवंटन की फाईल की खबर चल रही थी कि कैसे इधर से सचिन का भारत रत्न का मामला आया और पुरी काग्रेस उसी पर आकर टिक गयी जैसे मानो पुरे देश के लिए यही एक काम बचा है
Post a Comment