Thursday, May 5, 2011

कुछ कहती है तस्वीरें - 6 : ममता दीदी का भारतीय रेल







यात्रियों का हाल बेहाल, क्या स्लीपर - क्या एसी सब चल रहा एक ही चाल|

क्या ममता दीदी ऐसे ही बदलेंगी बंगाल को ?

शब्दों से बहुत ज्यादा कुछ कहने की जरूरत ही नहीं बची है। आप सब पूरे माजरे का अंदाजा ऊपर की तस्वीरों को देख कर ही लगा सकते हैं। गर्मी की छुट्टियों के बावजूद अतिरिक्त ट्रेनों की व्यवस्था नहीं की गई है। अब लोग जी कर सफ़र करें या मर कर सफ़र तो इन्हीं सीमित ट्रेनों में करना है। अब जेनरल बोगियों का हाल तो छोड़ ही दीजिये, एसी तथा स्लीपर बोगियों की स्थिती भयावह बनी हुई है। चूंकि एसी बोगियों में भीतर में केवल कंफर्म टिकट वालों को ही रुकने की इजाजत होती है इसलिए कंफर्म टिकट वाले भीतर में चैन से यात्रा कर पा रहे हैं पर टॉयलेट जाने के लिए टॉयलेट के बाहर वेटिंग लिस्ट वालों की जमीं भीड़ का सामना करना पड़ता है। स्लीपर वाले तो खचा-खच भड़ी भीड़ को देख टॉयलेट जाने की हिम्मत ही नहीं जूटा पाते। स्लीपर बोगियों के मेंटेनेंस की स्थिती इतनी जर्जर है की इस भीषण गर्मी में भी पंखे बंद पड़े हैं, स्विच बोर्डों का पता नहीं है, कहीं वायरिंग कवर करने वाले प्लेट की पेंच गायब है तो कहीं ट्यूब लाइट की जालियाँ खुली पड़ी हैं।
अब ममता दीदी ऐसे ही बदलाव और विकास का वादा बंगाल के लोगों से कर रही हैं जिसका रास्ता उन्नति की ओर न जाकर अवन्त्ति की ओर जाता है तो फिर भगवान बचाएं बंगाल तथा बंगाल वासियों को। वैसे एक बहुत पुरानी कहावत है कि लिफाफा देखकर मजनून का पता चल जाता है तो फिर इन रेल की तस्वीरों को देखकर, अगर बंगाल कि बागडोर ममता दीदी के हाथों में जाता है तो बंगाल के भविष्य का अभी सिर्फ हम अंदाजा लगा सकते हैं।

2 comments:

Rajeev Ranjan said...

अच्छा चित्र-संयोजन। खूबसूरत पेशगी। किन्तु ममता दीदी से लगता है आपको ‘एलर्जी’ है या फिर दिमागी पूर्वग्रह। रेल-परिचालन, देखरेख और मरम्मत जो लोग कर रहे हैं वे ममता दीदी के रिश्तेदार नहीं हैं. खाये-पीए अघाये लोग है. श्रम के पैसे बेशर्मी से लेने वालों को चाहिए कि इन तमाम दुश्वारियों का यथाशीघ्र निवारण करें. लेकिन वे चाहते ही नहीं हैं. ममता दीदी के रेलमंत्री रहने से ट्रेन न तो पटरी से उतर सकती है और न ही ऊपर उठ सकती है. वो तो बस दिशा देने का काम कर सकती हैं. अगर आज्ञापालक अनसुना करने के आदी हों तो फिर क्या? हर व्यक्ति की दृष्टि की एक सीमा होती है, उनकी भी है. बिहार में अकथ करिश्मा करने वाले नीतिश जी रेलवे में कोई जादू नहीं छोड़ पाए; बड़बोलेपन के आदी पासवान और आदरणीय लालू भी ‘कछहू ना किया-धरा’. सो ममता जो कर रही हैं, उससे फर्क पडे़गा. बदलाव के रुख को आहिस्ते सूंघिए.

डॉ. विवेक विश्वास said...

bhai Rajeev Ranjan aisa nahi lagta ki Mamta didi ka kuch jyada hi bachav kar rahe hain. Mahoday unhe Bangal se phursat mile tab to rail ko dekhein. Aisa lagta hai ki Unke gale me jabardasti hi yah congress sarkar rail bandh di hai aur yah didi jee use apne gale mein bandh kar desh aur sarkar par yehsan kar rahi hai.