प्रकाश :
ए.के.हंगल याद हैं आपको! उनका कर्ममय जीवन बहुआयामी रहा है. वह स्वतंत्रता सेनानी रहे हैं. शिखर अभिनेता का जीवन जिया है उन्होंने. रंगमंच, टीवी. और फिल्म तीनों में. लगभग दो सौ फिल्मों में काम किया है. भारतीय जन नाट्य संघ(इप्टा) के सूत्रधारों में रहे हैं. विचारसंपन्न हैं. वामपंथी विचारधारा उन्हें अपना सहचर मानती है. इंसानियत की जीवन भर पैरोकारी की है. इसकी भरपूर कीमत भी चुकाई है और चुका रहे हैं. अनेक फिल्मों में चरित्रनायक की भूमिका निभाई. वही अवतार कृष्ण हंगल इन दिनों गंभीर रूप में बीमार हैं. 95 वर्ष की उम्र में वह चरम आर्थिक संकट भी झेल रहे हैं. 44 वर्ष उन्होंने फिल्म उद्योग को दिए, लेकिन फिल्म बिरादरी का कोई व्यक्ति उनका हालचाल जानने नहीं गया. वाम बिरादरी ने भी कोई खोज-खबर नहीं ली, जबकि दो राज्यों में उनकी सरकारें हैं. न जन नाट्य संघ, न प्रगतिशील लेखक महासंघ, न जनवादी लेखक संघ, न जन संस्कृति मंच, न संगीत नाटक अकादमी, न राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय, यानी किसी ने भी आर्थिक-शारीरिक संकट से जूझ रहे अप्रतिम कलाकार की सुधि नहीं ली. चरम उपभोगवादी सत्ता तो हर कदम अपने फायदे के लिए उठाती है. अब हंगल की देखभाल से उनको क्या फायदा? फिर भी हंगल ने गहरी उदासी में तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण को मदद के लिए लिखा. लेकिन कोई पावती तक नहीं मिली, जबकि हंगल संयुक्त महाराष्ट्र आंदोलन के सेनानी भी थे. इस आंदोलन में उनकी पत्नी मनोरमा जेल गई थीं. यह हाल है पुरोगामी राज्य की सरकार का. वाम सरकारों ने भी फिक्र नहीं की. सरकारों का यही चरित्र है. लेकिन समाज! समाज ने भी कुछ नहीं किया. फिल्मी समाज में हंगल के वैचारिक रुझान वाले कम नहीं हैं. सब समर्थ हैं, लेकिन आत्मलोलुप. सिर्फ आशा पारेख और कुछ गिने-चुने लोग मदद को आए. ऐसा समाज मृत ही कहा जाएगा. हंगल कहते हैं कि बुजुर्ग कलाकारों की देखरेख राज्य का दायित्व है. वे जब सोवियत रूस गए थे तो वहां देखा कि उम्रदराज कलाकारों को बंगले में सारी सुविधाओं के साथ रखा जाता था. लेकिन देश की दिल्ली और राज्यों की दिल्लियां तो स्वार्थ की गढ है. उन्हें हंगल के जीवन से क्या काम?
( नागपुर से प्रकाशित 'लोकमत समाचार' से साभार)
*मेरे ब्लॉग पर प्रकाशित किए जाने तक अभिनेता आमिर खान द्वारा भी सहयोग की ख़बरें आई हैं.
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