बात अखबार की हो, टीवी. की या वेब की, राजनीतिक ख़बरों का दबदबा हर जगह कायम है तथा बाकी खबरों में आर्थिक खबरें प्रमुख बनती जा रही है | पटना से निकलने वाले अखबारों की स्थिती भी इससे इतर नहीं है |बिहार से निकलने वाले दो अग्रणी अखबारों 'हिन्दुस्तान तथा दैनिक जागरण' के साथ-साथ बिहार में जनसत्ता के विकल्प के रुप में देखे जा रहे 'प्रभात ख़बर' के अर्न्तवस्तु विश्लेषण कुछ दिलचस्प बातों की ओर इशारा करते हैं | यह विश्लेषण 06 से 10 जनवरी के अंकों पर आधारित है |
'हिन्दुस्तान' 06 जनवरी के अंक की शुरुआत एक एक्सक्लूसिव खबर के साथ करता है,जो उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी के आदेश पर लागु होने वाले 'एमनेस्टी योजना' से संम्बंधित है | इस योजना का उदेश्य वैसे लोगों को फायदा पहुँचाना है जो वर्षों से मकान या अपार्टमेंट का होल्डिंग टैक्स जमा नहीं किए हैं | 07 जनवरी के अंक का सेकेन्ड लीड खबर है- 'महादलितों को मिलेगा मकान', तो 08 जनवरी की शुरुआत होती है हेडलाईन- पौने तीन लाख की कार 07 सवार से |
सामान्य तौर पर देखें तो इन खबरों में हमें कुछ खास नहीं दिखता | सभी खबरें आम लोगों से जुड़ी हुई दिखती हैं, चाहे वह 'एमनेस्टी योजना' हो या महादलितों एवं सस्ती कार से जुड़ी खबर | परन्तु यह सारी ख़बरें राजनीतिक लाभ से प्रेरित हैं | 'एमनेस्टी योजना' शहरी वर्ग के 'ओपिनियन मेकर' समूह को लुभाने के लिए है तो दूसरी ख़बर स्पष्ट रूप से दलित वर्ग को आकर्षित करने के लिए | चूँकि आज लोगों की सोच अधिक भौतिकवादी होती जा रही है, इसलिए समाज के ओपिनियन मेकर समुह को खुश करने के लिए कार और मोटरसाईकल की खबरें देना भी मजबूरी है |
यही ख़बरें अलग - अलग हेडिंग के साथ अन्य अखबारों में भी प्रकाशित है, जैसे ‘दैनिक जागरण’ में- भूमिहीन महादलितों को मिलेगा घर, स्वागत करिए छोटी कारों की नई पीढी का आदी |
जनसत्ता के विकल्प के रूप में देखे जा रहे 'प्रभात ख़बर' का आलम तो यह है कि वह नीतीश सरकार की उम्र चार साल से अधिक हो जाने के बावजूद सपने बेचने का कार्य ही कर रही है, जैसे- ‘विकास के लिए वर्ल्ड बैंक का बिहार को ऑफर’, 'बिहार में भी मल्टीप्लेक्स आदी | ऐसा कोई भी अखबार नहीं जिसका एक पन्ना भी राजनीतिक ख़बरों से अछुता हो, पर प्रभात खबर तो उसमें भी एक कदम आगे है, इसने तो अपने दूसरे पन्ने का नाम ही 'Politics' कर रखा है |
प्रभात ख़बर का अर्न्तवस्तु इस बात को पूरी तरह पुष्ट करता है कि इसका मैनेजमेंट राजनीतिक दलों को खुश करने में लगा है | जो उनके व्यवसाय के लिए हितकर है | जिसे आधुनिक टर्मोलोजी के अनुसार बेहतरीन PR (Public Relation) भी कह सकते हैं|
अगर हम ख़बरों के स्थानीयता के आधार पर बात करें तो सभी अखबारों में स्थानीय ख़बरों के लिए अधिक तथा राष्ट्रीय, अर्न्तराष्ट्रीय ख़बरों के लिए जगह कम होते जा रहे हैं | हम यह भी कह सकते हैं कि आज हर अखबार का स्वरूप स्थानीय होता जा रहा है | हर अखबार सेहत-स्वास्थय और पर्यटन से जुड़ी ख़बरें भी दे रहा है | एक बात जो साफ तौर पर निकल कर सामने आती है वह यह कि पटना के अखबारों में भी और जगहों की तरह टेक्नोलॉजी से जुड़ी ख़बरों के लिए हर अखबार में लगातार जगह बढ रही है, इसकी वजह हम संचार क्रांति और कम्प्यूटर यूग के विस्तार को मान सकते हैं |
इस विश्लेषण में सबसे ज्यादा चौंकाने वाली बात यह निकल कर सामने आती है कि सभी अखबार नीतीश सरकार के 'जनसंपर्क मुहिम' ( PR campaign ) का हिस्सा बनी हुई है | अखबारों में इस बात की चर्चा तो होती है कि गाँव-गाँव में बिजली के तार लटकने लगे हैं, पर इस बात की चर्चा कोई अखबार नहीं करता कि उन तारों में बिजली आती भी है या नहीं | जगह-जगह हो रहे वृक्षारोपण की ख़बरें तो हर अखबार छापता है, परन्तु वृक्षारोपण के पश्चात पेड़ों की देखभाल हो रही है या नहीं पेड़ बचे भी हैं या नहीं, यह ख़बरें अखबारों से नदारद रहती है |
पंचायतों के विकास के लिए किए जा रहे फंडों की व्यवस्था की ख़बरों को तो प्रमुखता से छापा जाता है पर उस फंड के हो रहे बन्दरबाँट की खबरें शायद ही छपती हैं |किसानों से संबन्धित खाद-बीज की समस्याओं को भी उतनी जगह अखबारों में नहीं मिल पाती, जितनी मिलनी चाहिए | कुछ समय पहले 'पैक्स चुनाव' की खबरों से अखबारों के पन्ने रंगे रहते थे, पर चुनावी उत्सव बितने के पश्चात विजयी उम्मिदवारों के किसी भी गतिविधी की ख़बर नहीं दिखाई दे रही | चुँकि यह समय शीतलहर से प्रभावित है, ऐसे में मुख्यमंत्री द्वारा शहरी क्षेत्रों में अलाव की व्यवस्था के निरिक्षण की खबर तो सचित्र प्रकाशित होती है, परन्तु गाँव के गरीबों के ठिठुरन की खबर किसी को नहीं है |
नीतीश कुमार के 'बेस्ट बिजनेस रिफार्मर औफ द ईयर' चुने जाने की खबर 'प्रभात ख़बर' और 'हिन्दुस्तान' दोनों में प्रमुखता से छापी जाती है तथा गंगा की लहरों पर किए जा रहे राज्य सरकार के कैबिनेट मिटींग को सभी अखबार एक सूर में 'अभिनव प्रयोग' करार देते हैं, पर इस 'अभिनव प्रयोग' के बहाने जनता की गाढी कमाई को किस तरह खर्च किया जा रहा है, इस पर लिखने की जहमत उठाने वाला कोई नहीं है |
कहना गलत नहीं होगा कि व्यवसायिकता के कश्मकश के बीच भी मीडिया को अपनी निष्पक्षता बनाए रखनी चाहिए, जिससे कि उसके 'लोकतंत्र के चौथे खम्भे' के तगमे में दरार न आए |
'हिन्दुस्तान' 06 जनवरी के अंक की शुरुआत एक एक्सक्लूसिव खबर के साथ करता है,जो उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी के आदेश पर लागु होने वाले 'एमनेस्टी योजना' से संम्बंधित है | इस योजना का उदेश्य वैसे लोगों को फायदा पहुँचाना है जो वर्षों से मकान या अपार्टमेंट का होल्डिंग टैक्स जमा नहीं किए हैं | 07 जनवरी के अंक का सेकेन्ड लीड खबर है- 'महादलितों को मिलेगा मकान', तो 08 जनवरी की शुरुआत होती है हेडलाईन- पौने तीन लाख की कार 07 सवार से |
सामान्य तौर पर देखें तो इन खबरों में हमें कुछ खास नहीं दिखता | सभी खबरें आम लोगों से जुड़ी हुई दिखती हैं, चाहे वह 'एमनेस्टी योजना' हो या महादलितों एवं सस्ती कार से जुड़ी खबर | परन्तु यह सारी ख़बरें राजनीतिक लाभ से प्रेरित हैं | 'एमनेस्टी योजना' शहरी वर्ग के 'ओपिनियन मेकर' समूह को लुभाने के लिए है तो दूसरी ख़बर स्पष्ट रूप से दलित वर्ग को आकर्षित करने के लिए | चूँकि आज लोगों की सोच अधिक भौतिकवादी होती जा रही है, इसलिए समाज के ओपिनियन मेकर समुह को खुश करने के लिए कार और मोटरसाईकल की खबरें देना भी मजबूरी है |
यही ख़बरें अलग - अलग हेडिंग के साथ अन्य अखबारों में भी प्रकाशित है, जैसे ‘दैनिक जागरण’ में- भूमिहीन महादलितों को मिलेगा घर, स्वागत करिए छोटी कारों की नई पीढी का आदी |
जनसत्ता के विकल्प के रूप में देखे जा रहे 'प्रभात ख़बर' का आलम तो यह है कि वह नीतीश सरकार की उम्र चार साल से अधिक हो जाने के बावजूद सपने बेचने का कार्य ही कर रही है, जैसे- ‘विकास के लिए वर्ल्ड बैंक का बिहार को ऑफर’, 'बिहार में भी मल्टीप्लेक्स आदी | ऐसा कोई भी अखबार नहीं जिसका एक पन्ना भी राजनीतिक ख़बरों से अछुता हो, पर प्रभात खबर तो उसमें भी एक कदम आगे है, इसने तो अपने दूसरे पन्ने का नाम ही 'Politics' कर रखा है |
प्रभात ख़बर का अर्न्तवस्तु इस बात को पूरी तरह पुष्ट करता है कि इसका मैनेजमेंट राजनीतिक दलों को खुश करने में लगा है | जो उनके व्यवसाय के लिए हितकर है | जिसे आधुनिक टर्मोलोजी के अनुसार बेहतरीन PR (Public Relation) भी कह सकते हैं|
अगर हम ख़बरों के स्थानीयता के आधार पर बात करें तो सभी अखबारों में स्थानीय ख़बरों के लिए अधिक तथा राष्ट्रीय, अर्न्तराष्ट्रीय ख़बरों के लिए जगह कम होते जा रहे हैं | हम यह भी कह सकते हैं कि आज हर अखबार का स्वरूप स्थानीय होता जा रहा है | हर अखबार सेहत-स्वास्थय और पर्यटन से जुड़ी ख़बरें भी दे रहा है | एक बात जो साफ तौर पर निकल कर सामने आती है वह यह कि पटना के अखबारों में भी और जगहों की तरह टेक्नोलॉजी से जुड़ी ख़बरों के लिए हर अखबार में लगातार जगह बढ रही है, इसकी वजह हम संचार क्रांति और कम्प्यूटर यूग के विस्तार को मान सकते हैं |
इस विश्लेषण में सबसे ज्यादा चौंकाने वाली बात यह निकल कर सामने आती है कि सभी अखबार नीतीश सरकार के 'जनसंपर्क मुहिम' ( PR campaign ) का हिस्सा बनी हुई है | अखबारों में इस बात की चर्चा तो होती है कि गाँव-गाँव में बिजली के तार लटकने लगे हैं, पर इस बात की चर्चा कोई अखबार नहीं करता कि उन तारों में बिजली आती भी है या नहीं | जगह-जगह हो रहे वृक्षारोपण की ख़बरें तो हर अखबार छापता है, परन्तु वृक्षारोपण के पश्चात पेड़ों की देखभाल हो रही है या नहीं पेड़ बचे भी हैं या नहीं, यह ख़बरें अखबारों से नदारद रहती है |
पंचायतों के विकास के लिए किए जा रहे फंडों की व्यवस्था की ख़बरों को तो प्रमुखता से छापा जाता है पर उस फंड के हो रहे बन्दरबाँट की खबरें शायद ही छपती हैं |किसानों से संबन्धित खाद-बीज की समस्याओं को भी उतनी जगह अखबारों में नहीं मिल पाती, जितनी मिलनी चाहिए | कुछ समय पहले 'पैक्स चुनाव' की खबरों से अखबारों के पन्ने रंगे रहते थे, पर चुनावी उत्सव बितने के पश्चात विजयी उम्मिदवारों के किसी भी गतिविधी की ख़बर नहीं दिखाई दे रही | चुँकि यह समय शीतलहर से प्रभावित है, ऐसे में मुख्यमंत्री द्वारा शहरी क्षेत्रों में अलाव की व्यवस्था के निरिक्षण की खबर तो सचित्र प्रकाशित होती है, परन्तु गाँव के गरीबों के ठिठुरन की खबर किसी को नहीं है |
नीतीश कुमार के 'बेस्ट बिजनेस रिफार्मर औफ द ईयर' चुने जाने की खबर 'प्रभात ख़बर' और 'हिन्दुस्तान' दोनों में प्रमुखता से छापी जाती है तथा गंगा की लहरों पर किए जा रहे राज्य सरकार के कैबिनेट मिटींग को सभी अखबार एक सूर में 'अभिनव प्रयोग' करार देते हैं, पर इस 'अभिनव प्रयोग' के बहाने जनता की गाढी कमाई को किस तरह खर्च किया जा रहा है, इस पर लिखने की जहमत उठाने वाला कोई नहीं है |
कहना गलत नहीं होगा कि व्यवसायिकता के कश्मकश के बीच भी मीडिया को अपनी निष्पक्षता बनाए रखनी चाहिए, जिससे कि उसके 'लोकतंत्र के चौथे खम्भे' के तगमे में दरार न आए |
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