Friday, April 23, 2010

सामाजिक सरोकारों की पत्रकारिता जरूरी - प्रो.दीक्षित


मुनाफा अधिक होगा तो मूल्यों के साथ समझौता करना पड़ेगा यही वजह है कि सामाजिक सरोकारों की पत्रकारिता कमजोर हुई है और विकास पत्रकारिता हाशिए पर चली गई है यह बात विभिन्न समाचारपत्रों के संपादक रह चुके वरिष्ठ मीडियाकर्मी प्रो.कमल दिक्षित ने महात्मा गांधी अन्तराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय के जनसंचार विभाग में विशेष व्याख्यान देते हुए कही

उन्होंने कहा कि मीडिया के मूल्यों में बदलाव आया है। पहले समाज के हर समूह से खबरें प्रस्तुत की जाती थीं, आज सिर्फ पाठकों की रूचि को ध्यान में रखकर खबरें पेश की जा रही हैं रीडरशिप के अनुसार खबरों के मूल्य निर्धारत किए जाते हैं। वहीं किसी अखबार का पाठकवर्ग कौन है इसके आधार पर खबरें और विज्ञापन भी रूपान्तरित किए जाते हैं

अंग्रेजी और क्षेत्रीय अखबारों के कंटेंट डिफरेन्स की बात करते हुए प्रो.दीक्षित ने कहा कि अंग्रेजी अखबारों के मूल्यों में अधिक गिरावट आयी है इनकी सोच अधिक उपभोक्तावादी और व्यवसायिक है जबकि हिन्दी एंव क्षेत्रीय भाषाओं के अखबार आज भी समाज और सरोकार से जुड़कर विकास हेतु प्रयासरत है मूल्यनिष्ठ पत्रकारिता को बढ़ाने के उद्देश्य से एडिटर्स गिल्ड एवं ब्राडकास्टर्स कल्ब ऑफ इण्डिया द्वारा पत्रकारिता शिक्षा और मीडिया जगत के बीच सामंजस्य हेतु किए जा रहे प्रयासों की सराहना की जनसंचार विभाग के प्रोफेसर एवं अध्यक्ष डॉ.अनिल के.राय `अंकित´ ने व्याख्यान का आरम्भ करते हुए कहा कि अन्तराष्ट्रीय स्तर पर आज मीडिया की विश्वसनीयता चिन्ताजनक है | इसे मूल्यनिश्ठ पत्रकारिता द्वारा ही सन्तुलित किया जा सकता है

इस विशेष व्याख्यान में विभाग के अन्य शिक्षकों सहित विभाग के विद्यार्थियों एवं शोधार्थियों ने भागीदारी की

Thursday, April 22, 2010

“टेलीविजन समाचारों के अंतर्वस्तु में बदलाव दर्शकों की मांग के अनुरूप हुए हैं ” - हर्ष रंजन



टेलीविजन समाचारों के अंतर्वस्तु में बदलाव आया है और यह बदलाव दर्शकों के मांग की अनुरूप हुए हैं यह वक्तव्य महात्मा गांधी अन्तराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय के जनसंचार विभाग में आयोजित विशेष व्याख्यान माला `मीडिया संवाद` में राष्ट्रीय टेलीविजन समाचार चैनल `आज तक` के वरिष्ठ प्रोड्यूसर हर्ष रंजन ने व्याख्यान देते हुए कहा कि भावी पीढ़ी की पत्रकारिता को बेहतर बनाने के लिए हमें पत्रकारिता के दृष्टिकोण में रहे बदलाव को स्वीकार करना होगा। टेलीविजन पत्रकारिता को लेकर उनका कहना था कि टेलीविजन समाचारों के अंतर्वस्तु में जो बदलाव आए हैं, वह 90 के दशक में उदारीकरण के साथ शुरू हुए। यह बदलाव मीडिया ने अपने अनुसार नहीं किए बल्कि यह दर्शकों की अभिरूचि को ध्यान में रखते हुए किया गया है। जिसके कारण समाचार की परिभाशा भी बदली है। उनका कहना था कि पहले लोग किसी समाचार को कम समय में देखना चाहते थे पर आज समाचार की हर बारीकियों को देखना चाहते हैं। इन सब बातों के बीच उन्होंने स्वीकार किया कि सामग्री परोसने के तरीके में गिरावट आयी है।
उनका कहना था कि हर खबर के पीछे कुछ व्यावसायिक हित छुपे होते हैं और यह जरूरी भी है। क्योंकि इसके बिना चैनलों को जिंदा रखना सम्भव नहीं है। मीडिया ट्रायल को सही ठहराते हुए उन्होंने कहा कि अगर हम आरूशी हत्याकाण्ड को उदाहरण के रूप में ले तो अगर मीडिया द्वारा इस खबर पर लगातार नज़र नहीं रखी जाती तो यह मामला सी.बी.आई. को नहीं सौपा जाता और फिर उत्तर प्रदेश पुलिस के कारनामें जनता के सामने नहीं आते।
इस सब के बावजूद उनका यह मानना था कि मीडिया से भी कभी-कभी गलतियां हो जाती है, जिसे यथासम्भव दूर करने का प्रयास किया जा रहा है। उनका कहना था कि मीडिया फैसला सुनाने का अधिकार नहीं रखता, उसे सिर्फ सवाल खड़े करने चाहिए।
इस अवसर पर जनसंचार विभाग के प्रोफेसर एवं अध्यक्ष डॉ. अनिल के. रायअंकितने हर्ष रंजन का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि भावी पीढ़ी की पत्रकारिता को बेहतर बनाने का दायित्व युवा कंधो पर है।
कार्यक्रम में विभाग के शिक्षकों सहित मीडिया के विद्यार्थियों एवं शोधार्थियों की भागीदारी रही।

Tuesday, April 20, 2010

सेक्सवर्करों की वैश्विक एवं राष्ट्रीय स्थिति-2

अब तो वेश्यालय शेयर बाजार में कदम रख चुका है । ऑस्ट्रेलिया का सबसे बड़ा वेश्यालय है :- द डेली प्लेनेट

द डेली प्लेनेटशेयर बाजार में अपना नाम दर्ज कराने वाला विश्व का पहला वेश्यालय है । कंपनी ने दस साल पहले भी शेयर बाज़ार में कदम रखने की कोशिश की थी लेकिन नाकाम रही। पिछली गर्मियों में इसने फिर शेयर बाज़ार में शिरक़त करने का ऐलान किया और इस बार कामयाब रही । और, मजे कि बात यह कि इस कंपनी के शेयर धड़ाधड़ बिक रहे हैं और बाजार में उसकी कीमत भी तेज़ी से उपर जा रहे है । शुरूआत में इसके एक शेयर की कीमत थी 50 सेंट्स यानी आधा डॉलर और बाजार बन्द होते - होते उसकी कीमत हो गई एक डॉलर और नौ सेंट्स यानी दोगुने से भी ज्यादा ।

इसी तरह न्यूजीलैण्ड के एक अखबार में एक विज्ञापन छापा गया था जो वेश्याओं के लिए रिक्तियों के सम्बन्ध में एक क्लब के द्वारा छपवाई गई थी । हालांकि यह विज्ञापन विवादास्पद भी रहा क्योंकि विज्ञापन की पक्तियां कुछ इस तरह थीं :-

व्हाइट हाउस के एक क्लब के लिए वेश्याओं की ज़रूरत है

इस विज्ञापन के साथ प्रकाशित चिन्ह (लोगो) भी अमेरीका के झण्डे से मिलता जुलता था, जिसमें सितारे और पटि्टयां बनी हुई थीं । इस लोगो को देखकर कुछ देर के लिए यह भ्रम पैदा हो रहा था कि क्या वाकई अमेरिकी प्रशासन की कोई शाखा न्यूजीलौण्ड में तो नहीं खुल गई जिसके किसी क्लब के द्वारा यह विज्ञापन छपवाया गया हो ।

लेकिन वास्तव में यह विज्ञापन न्यूज़ीलैण्ड की राजधानी ऑकलैण्ड में स्थित एक वेश्यालय के द्वारा छपवाया गया था जिसका नाम मोनिका है तथा उसकी इमारत अमेरीकी व्हाइट हाउस से मिलती - जुलती है ।

कहने का तात्पर्य यह है कि वेश्यावृत्ति में आज इतना खुलापन आ गया है कि जहां पहले इस पेशे को चोरी-छिपे अंजाम दिया जाता था वहीं आज खुलेआम विज्ञापन छप रहे हैं । परन्तु, यह उन देशों में सम्भव है जहां वेश्यावृति को कानूनी वैधता प्राप्त है । न्यूज़ीलैण्ड भी उन गिने-चुने देशों में है जहां का कानून इस पेशे को वैध मानता है । न्यूज़ीलैण्ड की संसद ने हाल ही में वेश्यावृत्ति को अपराध की श्रेणी से बाहर करने के लिए कानून पारित किया है जिसके बाद लाइसेंसशुदा कोठे कुछ स्वास्थ और रोज़गार नियम - कानूनों के दायरे में रहकर यह पेशा चला सकते हैं । एक बात और गौर करने लायक है, पहले चाहे अपना देश हो या विदेश इस पेशे के मिडियेटर (दलाल) को कभी भी अच्छी नज़र से नहीं देखा गया और वे लोग भी नज़र बचाकर यह कार्य करते थे, लेकिन न्यूज़ीलैण्ड के इस क्लब के मालिक ब्रायन लेग्रोस अपने कारोबार चलाने के तरीके पर ज़रा भी शर्मिन्दा नहीं हैं।

लेग्रोस का कहना है कि उन्होंने इस कारोबार पर बहुत खर्च किया है और यह व्हाइट हाउस उनके महल जैसा है

नीदरलैण्ड में भी वेश्यावृत्ति को मान्यता प्राप्त है तथा वहां रिहायशी इलाकों में भी वेश्यालय स्थित हैं ।

लन्दन में भी वेश्यावृत्ति उद्योग पूरी तरह पैर फैला चुका है । ब्रिटेन में वेश्यावृत्ति करने वाली महिलाओं और लड़कियों के कल्याण हेतु काम करने वाले एक संगठन पॉपी प्रोजेक्ट के रिपोर्ट के अनुसार समूचे लन्दन में वेश्यावृत्ति एक उद्योग की तरह फैल गया है । इस संस्था ने शहर के 900 से अधिक वेश्यालयों को अपने सर्वेक्षण के दायरे में रखा । जिसमें पाया गया कि लन्दन में 77 विभिन्न संस्कृति से जुड़ी महिलाएं इस पेशे से जुड़ी हुई हैं। इनमें से ज्यादातर पूर्वी यूरोप और दक्षिण - पूर्व एशियाई देशों की हैं । इस रिपोर्ट की सहायक लेखिका हेलन एटकिंस ने लिखा है इनमें से भी ज्यादातर स्थानों पर बहुत छोटी आयु की लड़कियां भी अपनी सेवाएं देती हैं

इस सम्बन्ध में खास बात यह है कि जिन वेश्यालयों का सर्वे किया गया उनमें ज्यादातर रिहायशी इलाकों में स्थित हैं। एक वेश्यालय से जुड़े सूत्रों के अनुसार वहां पहली बार आने वाले अपने ग्राहकों को अगली बार आने के लिए 50 फीसदी छूट का वाउचर दिया जाता है । लन्दन में इस पेशे में भी व्यावसायिकता इतनी हानी है कि विज्ञापन में सेक्स को लड़कियों, महिलाओं के लिए बेहद ग्लैमरस, सरल और मौज - मस्ती भरा कार्य बता कर उन्हें इस पेशे के तरफ आकर्षित करने की कोशिश होती है।

कुछ साल पहले रूस में बच्चियों से वेश्यावृति कराने वाले एक बड़े रैकेट का पर्दाफ़ाश हुआ था । कुछ जगहों पर तो खुलेआम वेश्याओं को जरूरत और उपभोग की वस्तु समझा जाने लगा है उदाहरण के तौर पर हम उस घटना को ले सकते हैं जब 2004 में एथेंस ओलम्पिक खेलों से पहले, एथेंस के नगर परिषद ने खेलों के दौरान मांग पूरी करने के लिए ज्यादा से ज्यादा वेश्यालयों को परमिट देने का अनुरोध किया था ।

हालांकि इसका जबरदस्त विरोध शक्तिशाली यूनानी आर्थोडॉक्स चर्च के द्वारा किया गया था । चर्च का आरोप था कि एथेंस के अधिकारियों द्वारा ओलम्पिक के बहाने सेक्स पर्यटन को वढ़ावा देने की कोशिश हो रही है । यद्यपि एथेंस में वेश्यालयों को कानूनी वैद्यता प्राप्त है और इसी आधार पर एथेंस के मेअर दोरा बाकोईयनिस ने बचाव करते हुए कहा कि वे सिर्फ ग़ैर - क़ानूनी वेश्यालयों को लाइसेंस के लिए आवेदन करने को कह रही थीं, ताकि उन्हें नियमित करा दिया जाए

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Friday, April 9, 2010

कुछ कहती है तस्वीरें-2



चिलचिलाती धूप और गर्मी से हकलान यह नन्हा जीव पानी की चन्द बूंदों में ही ऐसे खुश.. जैसे उसके लिए सरिता फूट पड़ी हो | प्यास बुझाते हुए शायद इस महानुभाव को धन्यवाद भी कह रहा..

Wednesday, April 7, 2010

ज़मीर

मैं सुहाने मौसम में शान्तचित्त बैठा था,
कि एकाएक अनहद से आवाज आयी,
तुम कौन हो?
मैं हड़बड़ाया
इधर-उधर देखा,
कोई नज़र नहीं आया,
फिर मैंने हिम्मत करके पूछा,
भाई तुम कौन हो,
क्या जानना चाहते हो?
फिर आवाज आई
तुम कौन हो?
कहां हो और पहले बताओ?
मैं
सहमा डरा हुआ
अपना परिचय बताया-
मैं इक्कीसवी सदी का प्रकृति का मानव हूँ|
फिर आवाज आई- "अपना पूरा परिचय बताओ?
फिर मैंने आगे बोला-
मैं मनु एवं सतरुपा का वशंज हूँ
मेरा शरीर खून,
मांस-हड्डी का बना है,
मैं मानव हूँ,
सोच समझ बुद्धि में सबसे महान हूँ,
बड़े-बड़े काम, अविष्कार किये है
मैंने,
फिर आवाज आई-
तुम कौन हो
अब क्या कर रहे हो?
डरा-सहमा चुप रहा मैं'
फिर आवाज आई-
बोलो-बोलो तुम कौन हो?
फिर सहम कर बोला-
मैं अतिताइयों से डरा,
अपने पथ से भटका,
असहाय मानव हूँ
तब उसका चेहरा खिलखिलाया और बोला-
अब ठीक बोला|
फिर हमारा जमीर जागा,
मैं दौड़ा,
उठा भागा और आवाज लगाई
देखो-देखो ये आया है अतिताई-
फिर खींचकर एक तमाचा मारा,
अतिताई हो गया धरासायी|
फिर हमने मुस्कराया,
अपना पीठ थपथपया,
भरोसे को जगाया
तभी हमने आंतक को भगाया|
- सुषमा सिंह