देखो गरीबों की दीन-दसा |
फिर भी अमीरों की ठाठ सजा |
कहीं सूखी रोटी पे आफत |
कहीं मिष्ठानों की बरसात |
कहीं पट की सामर्थ नहीं |
कहीं पट न सुहात |
कहीं रही कल्पना भी फिकी |
कहीं हकीकत पे रंग चढा |
कहीं जीवन खाली पड़ा |
कहीं उमंग ही उमंग भरा |
देखो गरीबों की दीन-दसा |
फिर भी अमीरों की ठाठ सजा |
- Kushboo Sinha
9 th std.
D.A.V. Public School,
Pupri, Sitamarhi
Wednesday, February 24, 2010
Friday, February 19, 2010
जीवन का अफ़साना
इस डगर का ये भारी अफ़साना
मुश्किल है यहाँ से जी के जाना
दिन अंजाना , रात परवाना
फिर कैसा तू राही दिवाना ?
मिट गयी है जिन्दगी जीने की हसरत
करनी पड़ती यहाँ लाखों कसरत
दुखः भी आती तो देकर दस्तक
फिर कैसा ये चाहत बेगाना ?
है कैसी ये फितरत तेरी
या है मेरी नज़र टेढी
देख लीला दुनिया की !
उबकर मैंने आँखें बंद कर ली
है कैसा ये तेरा हरजाना ?
कहीं सिर्फ गम-मुसीबतें बर्षाना
तो कहीं खुशियाँ बनकर उमर जाना
फिर कैसा ये रिस्ता पुराना ?
है तो राह पार कर जाना
पड़ इसमें बार-बार कंकर-पत्थर का आना
और खुद को दुर्भाग्यशाली ठहराना
फिर कैसा तू राही दिवाना ?
- Kushboo Sinha
9 th std.
D.A.V. Public School,
Pupri,Sitamarhi
मुश्किल है यहाँ से जी के जाना
दिन अंजाना , रात परवाना
फिर कैसा तू राही दिवाना ?
मिट गयी है जिन्दगी जीने की हसरत
करनी पड़ती यहाँ लाखों कसरत
दुखः भी आती तो देकर दस्तक
फिर कैसा ये चाहत बेगाना ?
है कैसी ये फितरत तेरी
या है मेरी नज़र टेढी
देख लीला दुनिया की !
उबकर मैंने आँखें बंद कर ली
है कैसा ये तेरा हरजाना ?
कहीं सिर्फ गम-मुसीबतें बर्षाना
तो कहीं खुशियाँ बनकर उमर जाना
फिर कैसा ये रिस्ता पुराना ?
है तो राह पार कर जाना
पड़ इसमें बार-बार कंकर-पत्थर का आना
और खुद को दुर्भाग्यशाली ठहराना
फिर कैसा तू राही दिवाना ?
- Kushboo Sinha
9 th std.
D.A.V. Public School,
Pupri,Sitamarhi
Wednesday, February 17, 2010
मंडली एक, बच्चों की....
सुबह-सुबह जब
किरण धूप की निकलती है
मंडली एक, बच्चों की
कुड़ा बिछने निकलती है
मस्त-मौला ये अपने कामों में
शहर के गली-गली भटकती है
हर किसी की नज़र इनपे परती है
मगर, उन्हें यह तनीक भी नहीं अखरती है
जब इन बच्चों की आंखे उनपे पड़ती है
जिनके कदम बस्ता लेकर
विद्यालय की ओर बढती है
ख्वाबों में ये डूब जाते हैं
और किसी से पूछ भी नहीं पाते हैं
कि हम स्कूल क्यों नहीं जाते हैं ?
-Kushboo Sinha
9 th std.
D.A.V. Public School,
Pupri,Sitamarhi
किरण धूप की निकलती है
मंडली एक, बच्चों की
कुड़ा बिछने निकलती है
मस्त-मौला ये अपने कामों में
शहर के गली-गली भटकती है
हर किसी की नज़र इनपे परती है
मगर, उन्हें यह तनीक भी नहीं अखरती है
जब इन बच्चों की आंखे उनपे पड़ती है
जिनके कदम बस्ता लेकर
विद्यालय की ओर बढती है
ख्वाबों में ये डूब जाते हैं
और किसी से पूछ भी नहीं पाते हैं
कि हम स्कूल क्यों नहीं जाते हैं ?
-Kushboo Sinha
9 th std.
D.A.V. Public School,
Pupri,Sitamarhi
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