Tuesday, March 4, 2008

ये क्या हो रहा है?

विवेक विश्वास :
खबर ऐसी की हर प्रबुद्ध व्यक्ति का मन-मस्तिष्क झकझोड़ कर रख दे. शब्दों से गढी गई तस्विर ऐसी जो हमारी अन्तरात्मा तक को हिला दे.हमें सोंचने को मजबुर कर दे कि आखिर ये हो क्या रहा है?क्या दिन-ब-दिन नासूर बनते इस घाव से हम निजात नहीं पा सकते?क्या धारावाहिकों की तरह लगातार चल रहे इस सिलसिले को हम रोक नहीं सकते?

जी हाँ हम बात कर रहे हैं आए दिन अखबारों एवं टेलीविजन चैनलों कि सुर्खी बनती बलात्कार की घटनाओं की.आकड़े बता रहे हैं कि आज हमारी केंद्रिय राजधानी दिल्ली तक इस नजरिये से सुरक्षित नहीं है.स्थिती तब और खतरनाक हो जाती है जब समाज के पहरुये ही बलात्कार जैसी घिनौने घटना को अंजाम देने लगते हैं,वह भी ऐसे जगह जहाँ एक नहीं दो-दो राज्यों के राजभवन स्थित है(चंडिगढ में).हलाँकि उस घटना की जाँच चल रही है.परन्तु ऐसी घटनाओं को जिस विधवत्स तरिके से खासकर टेलीविजन चैनलों पर परोसा जाता है उसका सबसे बुड़ा प्रभाव हमारी युवा पिढी एवं बच्चे झेल रहे हैं.इस तरह की घटनाओं के लिये टेलीविजन चैनलों पर दिखलाए जाने वाले अश्लिल विज्ञापन भी कम जिम्मेदार नहीं हैं,जो कच्ची उम्र के बच्चों को भी समय से पहले व्यस्क बना देते हैं.

इस तरह की घटना के बानगी के रुप में हम शनिवार 01 मार्च 2008 को घटित घटना को ले सकते हैं. जिसमें एक नौ वर्षिया बच्ची जो दूसरी कक्षा की छत्रा थी के साथ एक ही स्कूल के आठ से 14 वर्ष आयुवर्ग के बच्चे ने सामुहिक बलात्कार किया.हद तो तब हो जाती है जब 45 और 50 वर्ष के अधेड़ द्वारा 10 और 12 वर्ष की बच्ची का बलात्कार की खबर आती है.

जिस तरह हमारे समाज में नैतिकता का स्तर रसातल को छुता जा रहा है वह हमारे समाज के लिये एक गंभिर चिन्तन का विषय है.इस तरह की घटनाओं के हम सिधे-सिधे टेलीविजन चैनलों को जिम्मेदार ठहराकर अपनी जिम्मेदारिओं से मुक्त नहीं हो सकते. हमें अपने समाज को इसके अनजान खतरों से बचनें के लिए मशिनी मानव बनने की बजाय बच्चों को संस्कार एवं नैतिकता का पाठ पढाकर उसके बौद्धिक चेतना के स्तर को उपर उठाने की जरुरत है.